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खग जाते हैं। मेरा बस चलता तो एक एक मिनट के एक एक घंटे बना देता।

राजे०--और मेरा बस चलता तो एक एक घण्टेके एक एक मिनिट बना देती। जब प्यास भर पानी न मिले तो पानीमें मुंह ही क्यों लगाये। जब कपड़ेपर रँगके छींटे ही डालने हैं तो उसका उजला रहना ही अच्छा। अब मनको समेटना सीखूंगी।

सबल--प्रिये.........

राजे०--(बात काटकर) इस पवित्र शब्दको अपवित्र न कीजिये।

सबल--(सजल नयन होकर) मेरी इतनी याचना तुम्हें स्वीकार करनी पड़ेगी। प्रिये मुझे अनुभव हो रहा है कि यहां रहकर हम आनन्दमय प्रेमका स्वर्ग सुख न भोग सकेंगे। क्यों न हम किसी सुरम्य स्थानपर चलें जहां विघ्न और बाधाओं, चिन्ताओं और शंकाओंसे मुक्त होकर जीवन व्यतीत हो। मैं कह सकता हूँ कि मुझे जल वायु, परिवर्तन के लिये किसी स्वस्थकर स्थानकी जरूरत है, जैसे गढ़वाल, आबू पर्वत या रांची।

राजे०--लेकिन ज्ञानी देवीको क्या कीजियेगा। क्या यह साथ न चलेंगी?

सबल--बस यही एक रुकावट है। ऐसा कौनसा यत्न