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दूसरा अङ्क

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गुलाबी--कुछ भेंट-भाँट तो लेंगे नहीं?

ज्ञानी--अरे राम राम! महात्माओं को रुपये पैसेका क्या मोह। देखती तो हो कि मोतियों के ढेर सामने लगे हुए हैं, किस चीज़की कमी है?

(दोनों कमरेमें आती हैं। गाना बन्द होता है।)

ज्ञानी--अरे! महात्माजी कहां चले गये? यहाँसे उठते तो नहीं देखा।

गुलाबी--उसकी माया कौन जाने। अंतरध्यान हो गये होंगे।

ज्ञानी--कितनी अलौकिक लीला है!

गुलाबी--अब मरते दमतक इनका दामन न छोडूँगी। इन्हींके साथ रहूंगी और सेवा टहल करती रहूँगी।

ज्ञानी--मुझे तो पूरा विश्वास है कि मेरा मनोरथ इन्हींसे पूरा होगा। सहसा चेतनदास मसनद लगाये बैठे दिखाई देते हैं।

गुलाबी--(चरणोंपर गिर कर) धन्य हो महाराज, आपकी लीला अपरमपार है।

ज्ञानी--(चरणोंपर गिरकर) भगवान, मेरा उद्धार करो।

चेतनदास--कुछ और देखना चाहती है?

ज्ञानी--महराज बहुत देख चुकी। मुझे विश्वास हो गया