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बैठी हुई हैं। बाबा चेतनदास ग़लीचेपर मसनद
गुलाबी--आज महात्माजीने बहुत दिनोंके बाद दर्शन दिये।
ज्ञानी--मैंने समझा था कहीं तीर्थयात्रा करने चले गये होंगे।
चेतनदास--माता जी मेरेको अब तीर्थयात्रासे क्या प्रयोजन। ईश्वर तो मनमें है, उसे पर्वतोंके शिखर और नदियों के तटपर क्यों खोजूं। वह घट-घट व्यापी है, वही तुममें है, यही मुझमें है, वही प्राणिमात्रमें है, यह समस्त ब्रह्माण्ड उसीका विराट स्वरूप है, उसीकी अखित ज्योति है। यह विभिन्नता केवल बहिर्जगतमें है, अन्तर्जगतमें कोई भेद नहीं है। मैं अपनी कुटीमें बैठा हुआ ध्यानावस्थामें अपने भक्तोंसे साक्षात करता रहा हूँ। यह मेरा नित्यका नियम है।
गुलाबी--(ज्ञानीसे) महात्माजी अन्तरजामी हैं। महराज
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