पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/८५

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  • मंगीत विशारद *

ऊपर दिये पारिजात के श्लोक के अनुसार ग्राम तीन प्रकार के हुए -- १--पडजग्राम २-मध्यमग्राम ३–गंधारग्राम गन्धार ग्राम के बारे में यह बताया जाता है कि यह किमी प्रकार यरातल से हटकर देवलोक पहुँच गया । यह वास्तव में निपाद ग्राम था क्योंकि इसका आरम्भ निपाट म्बर में होता था, किन्तु गन्धर्यों द्वारा उसका प्रयोग होने के कारण उसका नाम गन्धर्वग्राम हुआ फिर आगे चलकर इसका अपभ्रश रूप गधारग्राम होगया। ७ स्सरी मे जो श्रुतिया हैं उनके समूह को ग्राम कहते हैं। स्वरों पर श्रुतियों के वाटने के मिद्वान्त - चतुश्चतुश्चतुश्चैव के अनुसार ४-७-६ - १३ - १७ - २०-२२ इन श्रुतियों पर क्रमश - सा रे ग म प ध नि इस प्रकार स्वरोको स्थापित करने पर जो ग्राम बनता है उमे पडज ग्राम कहेगे। यदि इस श्रुत्यन्तर में तनिक भी फरक पडेगा तो वह पडज ग्राम नहीं माना जायगा । अब मध्यम ग्राम इस प्रकार होगा कि पचम स्वर को जो फि २७ वी श्रुति पर है, हटाकर १६ नों पर ले आया जाय। जैसे - " - ७ - ६ - १३ - १६ - ०० - २२ मा रे ग म प व नि यह होगया मध्यम ग्राम । अव गन्धार ग्राम इस प्रकार होगा कि रिपभ स्वर एक श्रुति नीचे उतरकर ६ वीं श्रुति पर, गान्धार १ सुति ऊपर चढकर १० वीं पर, धैवत १ श्रुति नीचे उतरकर १० वीं पर और निपाद १ अति उपर चढकर पहली श्रुति पर स्थिर होगा। इस प्रकार - ४ - ६ - १० - १३ - २६ - १६ - १ मा रे ग म प . व नि जिस प्रकार भिन्न-भिन्न गारों में भिन्न-भिन्न प्रकार के मनुष्य रहते हैं, उसी प्रकार सगीत के भिन्न-भिन्न 'ग्रामों में भिन्न प्रकार के अन्तर (फासले ) पर स्वर रहते है। अत म्बरों को भिन्न-भिन्न प्रकार मे श्रुतियों पर स्थिर करने के लिये ही प्राचीनकाल में "ग्राम" की उत्पत्ति हुई । अब आगे के एक नक्शे में प्राचीन ग्रन्थों के आधार पर तीनो पामों को २२ श्रुतियों पर एक साथ दिसाया जाता है -