पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/६५

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___ * सङ्गीत विशारद - - - हमारी उत्तरार्ध मप्तक | व्यक्टमम्मी के कल्पित नाम १-१ र सा १-प धा ना सा •~प व नि सा .-५ धा नि सा ३-५ ध नि सा ३-५ धा न सा ४-५ धी नी सा ५-५ च नि सा ६~- नि नि सा इस प्रकार स्वरों को कल्पित सज्ञाएं देकर उन्होंने थाट की मम्पूर्णता कायम रगो है। इम युक्ति मे उनके ७२ थाटों में कोई भी म्बर वर्जित दियाई नहीं देगा। उपरोक्त ७० थाटों में से हिन्दुस्तानी सगीत पद्धति में केवल १० थाट ही प्रचलित हैं, क्योंकि इनसे ही हमारा काम भली भाति चल जाता है। इनके नाम और सर इस लेग्य के प्रारम्भ में बताये ही जा चुके हैं। उत्तरो सङ्गीत पद्धति के १२ स्वरों से ३२ थाट यह बताया जा चुका है कि व्य कटमसी पढित के स्वर हमारे स्वरो के समान नहीं थे, इसलिये उन्होंने अपने स्वरों के हिसाब से ७० थाट बनाये। किंतु यदि हम व्य कटमनी के स्वरों पर ध्यान न देकर अपनी हिन्दुस्तानी सगीत पद्धति के १२ स्वरों के अनुसार थाट रचना करें तो उनके अनुसार केरल ३० थाट ही बनने सम्भव है। वह किस प्रकार बनेंगे, यह बताया जाता है। सप्तक के पूर्वाग और उत्तराग भाग पहिले की तरह कर लीजिये (१)सारेरे गुग म और (२)प ध ध नि नि सा । सप्तक के प्रथम भाग से मप्तक के दूसरे भाग से १-प -प ध ध नि नि सा सा -सा ३-- सा ५- सा रे रे रे ग ग ग म म म ~प ध नि सा इम प्रकार चार स्वर वाले ८ मेल बनाने के बाद अब इनको मिलाकर ७ स्वर वाले मेल बनाये जाएँ तो१४४=१६ मेल इस प्रकार वनेंगे