पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/५०

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  • सङ्गीत विशारद *

५१ ३ बराबर भागों में बांटा जाय तो १८:३=६ इंच पर पञ्चम स्वर बोलेगा । इस प्रकार पञ्चम स्वर लम्बाई घुड़च से १८+६=२४ इंच हुई। प सां मेरु सा २४ गान्धार षडजपंचममध्ये तु गान्धारस्थानमाचरेत् । षडजपंचमगं सूत्रमंशत्रयसमन्वितम् ॥ षडज और पञ्चम के बीच में गन्धार है। अर्थात् गन्धार स्वर पञ्चम से ६ इंच ___ बांई ओर होगा और घुड़च से गन्धार की लम्बाई २४+६=३० इंच होगी। सा ग सां ३० २४ १८ । ध्यान रहे श्री निवास का यह गन्धार वर्तमान प्रचलित कोमल गन्धार है क्योंकि इन्होंने अपने शुद्ध थाट में ग - नि कोमल लिये हैं। रिषभ तत्रांशद्वयसंत्यागात् पूर्वभागे तु रिभवेत् । रिषभ स्वर को इस प्रकार बताते हैं कि षड़ज और पञ्चम के बीच के स्थान के ३ भाग करके मेरु के पूर्व भाग में रिषभ स्वर बोलेगा मेरु और पञ्चम के बीच का स्थान १२ इंच है तो १२:३=४ मेरु से चार इंच पर रिषभ हुआ, इस प्रकार घुड़च से रिषभ की लम्बाई ३६-४ = ३२ इंच हो जायगी। सा रे प . सां .३६ ३२ . धैवत पंचमोत्तरषड़जाख्यमध्ये धैवतमाचरेत् ।। पञ्चम और तार षड़ज के मध्य स्थान में धैवत स्वर स्थित है ऐसा श्री निवास पंडित का कहना है, किन्तु प - सां के बीचोबीच में धैवत स्थापित करके जब हम बजाते हैं तो कुछ ऊंचा अर्थात् चढ़ा हुआ बोलता है, इस थोड़े से अन्तर के लिये श्री निवास का कहना है कि "स्वरसंवादिताज्ञानं स्वरस्थापन कारणम्” इसका भावार्थ यही है कि रिषभ का स्थान निश्चित् होजाने पर धैवत का स्थान "षड़जपञ्चम भाव से कायम कर लेना चाहिए। धैवत के उपरोक्त श्लोक में "मध्ये" का अर्थ वीच न मानकर क्षेत्र मान लेने से सब ठीक टोजाना है। दज पळम भाव का अर्थ गृही है कि जिस समार-ए- =