________________
२६
- सङ्गीत विशारद *
- - स्त दर्पण का फारमी अनुवाद भी होचुका है । इसके गुजराती तथा हिन्दी अनुवाद भी वर्तमान काल में होगये है, इसमे इम अन्य की लोरप्रियता आभास भली प्रकार मिलता है।* हैं व्यकटमयी १९६० ६० के आसपास शाङ्ग देव गुरु परम्परा के शिप्य है व्यकटमसी पडित ने दक्षिण पद्धति के आधार पर मगीत का एक है चतुर्दै डिप्रकाशिका है है अन्य 'चतुर्दण्डिप्रकाशिका' निर्मित किया। इममें गणितानुमार सप्तक am LE के १२ स्वरों मे ७० मेल अर्थात् थाट और एक थाट मे ४८८ रागों को उत्पत्ति सिद्व की है । थाटों में से १६ थाट जो दक्षिणी पद्धति में प्रयोग किये जाते हैं उनका विवरण तथा इन थाटी ने उत्पन्न ५५ रागों का विवरण भी इस पुस्तक में दिया है। [शाहजहा का समय-१७ वीं शताब्दी] शाहजहा का शासनकाल १६०८-१६५८ ई० माना जाता है। यह बादशाह खुद गाना जानता था। इसके उर्दू भापा के गाने अत्यन्त मधुर और आकर्षक होते थे। गायकों का इमके यहा इतना आदर था कि अपने दरवारी गया देरगग्गा और लालसा को इमने चाटी से तुलनाकर ४५००) मे प्रत्येक को पुरस्कृत किया । इनके अतिरिक्त शाहजहा के दरवार में प्रमिद गायक रामदास महापट्टर और जगन्नाथ भी थे। [औरगजब का समय-१६५८ ई० से १७०७ ई.] औरगजेब आलमगीर सगीत का कट्टर शत्रु था, उमे सङ्गीत से इतनी चिढ थी कि एक दिन हुक्म निकाल दिया कि सन माज दफना दिये जॉय । इमके समय में यद्यपि सङ्गीत को राजाश्रय नहीं रहा,मिन्तु पृथक रूपसे मङ्गीतनों की साधना को औरगजेन भी नहीं रोक सका। अहोरल सत्रहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में उस समय के सङ्गीत विद्वान पडित अहोवल ने सन् १६५० ई० के लगभग हिन्दुस्तानी मगीत है सगीत पारिजात इकाएर का एक महत्वपूर्ण अन्य “सगीत पारिजात" लिग्ना । इसी पडित ने 3 मर्व प्रथम वीणा के वजने वाले तार की लम्बाई पर भिन्न-भिन्न नाप मे अपने शुद्ध तथा निकृत स्वरों की स्थापना की। अहोवल का शुद्ध थाट भी लोचन की भाति जस्ल प्रचलित काफी थाट के समान था। पारिजात का फारसी अनुवाद १७२४ ई० में श्री दीनानाथ द्वारा हया और हिन्दी अनुवाद श्री कलिन्द जी द्वारा १६४१ ई० में होकर सङ्गीत कार्यालय हायरम मे प्रकाशित हुआ। है हृदय कौतुक है पारिजात के पश्चात हृदयनारायणदेव ने "हृदय कौतुक" है और "हृदय प्रकाश" यह दो अन्य लिसे, जिनमे अहोवल का हृदय प्रकाश है ..अनुकरण करते हा १२ स्वर स्थान वीणा के तार पर समझाये हैं। भारभट्ट के सङ्गीत विद्वान प. भावभट्ट ने सगीत के ३ ग्रथ भी (१६७४है १७०६ ० के लगभग) लिसे (१) अनूपविलास (-) अनूपाकुश ग्रन्थ है (३) अनूपसङ्गीत रत्लाफर | भारभट्ट दक्षिण पद्वति के लेग्नक थे, इनका है शुद्ध थाट “मुसारी" है। २० मेल (थाटों) में इन्होंने सब रागों का विभाजन किया है। * सङ्गीत दर्पण का हिटी अनुपाट १५०ई० मे सङ्गीत कार्यालय हाथरस मे प्रकाशित हुया है। गुजराती अनुपाट श्री रतनमी लीनाघर कर द्वारा इममे पहिले ही प्रकाशित होचुका था। mang स्त pmmmmmmmmmmmint