पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/२२

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  • संगीत विशारद *

२१ - नारद कृत सातवीं शताब्दी के लगभग "नारदीय शिक्षा” नामक एक नारदीय शिक्षा ग्रन्थ नारद का लिखा हुआ मिलता है। यहां पर पाठकों को यह । बता देना भी उचित होगा कि यह वे नारद नहीं हैं जो देवर्षि नारद के नाम से प्रसिद्ध थे, वरन् यह अपने समय के दूसरे ही नारद हैं। इस ग्रन्थ में भी सामवेदीय स्वरों को विशेष महत्व देते हुए ७ ग्राम रागों का वर्णन किया गया है, जिनके नाम इस प्रकार है: १ षांडव, २ पञ्चम, ३ मध्यम, ४ षड़जग्राम, ५ साधारिता, ६ कैशिकमध्यम और ७ मध्यम ग्राम । सातवीं और आठवीं शताब्दियों में दक्षिण भारत में भक्ति आन्दोलन का विशेष जोर रहा, अतः भक्ति और सङ्गीत के सामंजस्य द्वारा जगह-जगह कीर्तन और भजन गाये जाने लगे, इस प्रकार धार्मिक भावना का बल पाकर इस काल में सङ्गीत का यथेष्ट प्रचार हुआ। < आठवीं शताब्दी में नारद का एक और ग्रंथ सङ्गीत मकरन्द नारद कृत । प्रकाश में आया, जिसमें राग रागनियों की कल्पना पुरुष राग और सङ्गीत मकरंद । स्त्री रागों के रूप में प्रथम बार की गई। कहा जाता है कि इसी के आधार पर आगामी ग्रन्थकारों ने राग रागनी वर्गीकरण किये। ++ + ++++ D + + + (३) मध्य काल ( मुसलिम काल) [ सन् ११०० ई० से १८०० ई० तक ] मुसलमानों का आगमन भारत में ११ वीं शताब्दी में हुआ । इसी समय से भारतीय सङ्गीत में परिवर्तन आरम्भ हुआ। भारतीय सङ्गीत शास्र ( Theory ) उस समय तक संस्कृत भाषा में होने के कारण मुसलमान उसे समझने में असमर्थ रहे, फिर भी गायन वादन (क्रियात्मक सङ्गीत ) में उन्होंने अच्छी उन्नति की। नये-नये रागों का आविष्कार । किया एवं तरह-तरह के नवीन संगीत वाद्य बने, जिनका तत्कालीन मुसलिम बादशाहों द्वारा आदर हुआ और गायक-वादकों का सम्मान होने लगा। इसके बाद १२ वीं शताब्दी में सङ्गीत की दशा विशेष अच्छी न रही, क्योंकि इस काल में मुहम्मद गौरी तथा अन्य मुसलिमों द्वारा हिन्दू राजाओं से युद्ध होता रहा, जिसके कारण देश में अव्यवस्था फैली, अतः सङ्गीत प्रचार के मार्ग में भी बाधा पड़ना स्वाभाविक ही था। १२ वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में "गीत गोविन्द” नामक संस्कृत के एक " प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना हुई। इसके रचयिता प्रसिद्ध कवि और सङ्गीतज्ञ गातगावन्द । जयदेव हैं, जिन्हें उत्तर भारत का प्रथम गायक होने का सम्मान प्राप्त था। गीत गोविन्द में राधा-कृष्ण सम्बन्धी प्रबन्धगीत हैं, जिन्हें आज भी अनेक गायक