पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/२०४

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२१६ इन्टर और विशारद कोर्स के लिये कुछ संगीत विद्वानों का संक्षिप्त परिचय जयदेव 'गीतगोविन्द' के यशस्वी लेखक जयदेव का नाम साहित्य और सङ्गीत जगत में आदर के साथ लिया जाता है। आप उच्च कोटि के कवि होने के साथ-साथ वाग्गेयकार और सङ्गीतज्ञ भी थे। भारतीय संगीत में आपको उच्चस्थान प्राप्त है । जयदेव कवि का जन्म बंगाल के केन्डुला ग्राम में ईसा की बारहवीं शताब्दी में हुआ था, आपके पिता का नाम श्री मजीयदेव था। उस युग के वैष्णव सम्प्रदाय के सुप्रसिद्ध महात्मा श्री यशोदानन्दन के आप शिष्य थे । आपके गुरुजी ब्रज में निवास करते थे। वाल्यकाल में ही माता-पिता का स्वर्गवास हो जाने के कारण, अल्पायु में ही जयदेव घर-बार छोड़कर जगन्नाथपुरी चले गये और वहां के पुरुषोत्तमधाम में निवास करने लगे। इसके पश्चात् आपने अन्य प्रसिद्ध-प्रसिद्ध तीर्थस्थानों की यात्रा की और कुछ समय ब्रज भूमि में भी भ्रमण किया । कुछ समय बाद आपका विवाह होगया और अपनी पत्नी के साथ आपने देश का पर्यटन किया। तत्पश्चात् आपने 'गीत गोविन्द' नामक प्रसिद्ध संस्कृत ग्रंथ की रचना की। 'गीतगोविन्द' जयदेव की एक अमर कलाकृति है। इसके अनुवाद विभिन्न भारतीय भाषाओं में तो हो ही चुके हैं, साथ ही, लेटिन, जर्मन और अंग्रेजी भाषाओं में भी इसके भाषान्तर हो चुके हैं। इस से भली-भांति विदित होता है कि यह ग्रंथ कितना महत्वपूर्ण है। जयदेव कवि गायन एवं नृत्य के भी प्रेमी थे, इसलिये 'गीतगोविन्द' में प्रत्येक अष्टपदी पर राग व ताल का निर्देश मिलता है। उनकी कविताएँ आज भी अनेक वैष्णव मंदिरों में राग और ताल सहित गायी जाती है । दक्षिण के कुछ मन्दिरों में तो नृत्य के साथ आपकी अष्टपदी अभिनीत की जाती हैं, जिनमें ताल और लय के साथ-साथ भाव प्रदर्शन भी होता है । गीतगोविन्द की मूल रचना संस्कृत में करके आपने कुछ सङ्गीत प्रबन्ध हिन्दी भाषा में भी रचे । इसका प्रमाण आपके बनाये हुए कुछ ध्रुवपदों द्वारा अब भी मिलता है। कहा जाता है कि आप एक राज दर्बार में सम्मानपूर्वक रहते थे; किन्तु अपनी पत्नी ( पद्मावती ) के स्वर्गवास हो जाने के बाद, राजाश्रय छोड़कर अपने गांव में चले आये और कुछ समय तक साधु जीवन व्यतीत करते-करते अपनी जन्म भूमि में ही परलोक वासी होगये । उस गांव में आपकी एक समाधि है, जहां प्रतिवर्ष मकर संक्रान्ति के दिन अब तक मेला लगता है।