पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/२०३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२१८

  • सङ्गीत विशारद *

यन्त्र-वादकों के गुण दोष प्राचीन ग्रन्थकारों ने वाद्य यन्त्र बजाने वालों के गुण-दोषो का जो वर्णन किया है, उनका भावार्थ इस प्रकार है वादक के गुण (१) गीत, वाद्य, नृत्य में पारगत हो । (२) भिन्न-भिन्न याद्या (सानों) को बजाने में कुशल हो। (3) वाद्य यन्त्र बनाने की जानकारी रसने वाला हो। (४) ग्रह बान रसने वाला हो। (५) अँगुली सचालन में कुशल हो । (8) ताल और लय का ज्ञान रसता हो । (७) विभिन्न वाद्य यन्त्री के विषय में पूर्ण ज्ञान हो । (5) हस्त संचालन में कुशल हो । (६) किस वाद्य यन्त्र को बनाने में कौनसे शारीरिक अवयवों से सहायता मिलती है, इसका ज्ञान रखने वाला हो। (१०) स्वरों के उतार-चढ़ाव का ज्ञान रसने वाला हो । वादक के दोष जिन वादकों में उपरोक्त १० गुण नहीं है या जो बादक उक्त बातो का ज्ञान नहीं रसते और फिर भी किसी वाद्य को वजाने की चेष्टा करते हैं, वे सफलता प्राप्त नहीं कर सकते । इस प्रकार उक्त १० गुणों का अभाव ही १० दोपों में बताया गया है।