पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१७५

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  • सगीत विशारद *

- परन-ताल की किसी भी मात्रा से प्रारम्भ करके जो वोल सम पर समाप्त होता है, उसको अथवा गृह से सम तक के वाज को परन कहते हैं । ताल के दम प्राण-प्रत्येक जाति के तालों में १० वाते अवश्य ही मिलेगी, इन्हें ताल के प्राण कहते हैं। (१) काल () क्रिया (३) कला (४) मार्ग (५) अङ्ग (६) प्रस्तार (७) जाति (5) ग्रह (8) लय (१०) गति । काल -समय का ही दूसरा नाम "काल" है। काल से ही मात्रा और तालों की रचना हुई है और इसी से लय बनती है। क्रिया -किसी भी ताल की मात्राओं के गिनने को क्रिया कहते हैं । क्रिया से ही हम मालुम होता है कि अमुक ताल मे कोन-कौन से अङ्ग हैं और वह कौनमी ताल है। क्रिया के भेद माने गये हैं (१) सशब्द क्रिया (२) निशब्द क्रिया । सशब्द क्रिया- "ताल की मात्राओं या समय को गिनने की वह क्रिया है जिसमें आवाज उत्पन्न हो, अर्थात् ताली देकर मात्रा गिनना । निःशब्द क्रिया -ताल का मानाऐ जब उगलियों पर या मन ही मन में विना शब्द किये हुए गिनी जाये उसे नि शब्द क्रिया कहेगे। कला मात्राश्री के हिस्से ( भाग) को कला कहते हैं। जैसे आधी मात्रा, चौथाई मात्रा या मात्रा आदि । मार्ग प्राचीन ग्रन्थों मे ४ प्रकार के वताये गये हैं । ध्रुव, चतुरा, दक्षिणा और वृत्तिका । क्ला के हिसाब से इन्हें भिन्न-भिन्न प्रकार मे बाटा जाता था। किन्तु इनका वास्तविक रूप क्या था, इसका कोई पता नहीं चलता । अङ्ग -ताल के समय मे जो भिन्न-भिन्न भाग होते हैं, उन्हे अङ्ग कहते हैं। यह छै प्रकार के है, जिन्हे अनुद्रुत, द्रुत, लघु, गुरु, प्लुत और काफपद कहते हैं। अनुद्रुत मे १ मात्रा, द्रुत में - मात्रा, लघु मे चार मात्रा, गुरु मे = मात्रा, ग्लुत में १२ मात्रा और काफपद में १६ मात्रा का समय माना गया है । प्रस्तार-जिस प्रकार ७ स्वरों के फैलाव से ५०४० ताने पैदा हुई हैं, उसी प्रकार १ मात्रा मे लेकर १६ मात्रा के प्रस्तार से भिन्न-भिन्न ताले पैदा होकर उनकी सत्या ६५५३५ होजाती है । प्रस्तार का अर्थ है वढाना या फैलाना । जाति- ताल के बोलो की रचना जितने-जितने अक्षरो से हुई हैं उनके अनुसार पाच जाति कायम की गई हैं, जो निम्नलिसित हैं (१) चतुस्र जाति ४ मात्रा के लिये "तक विन" (२)तिम्र जाति ३" "तकिट". (३) सण्ड जाति "तकिट किट" (४) मिश्र जाति "तक धिन तकिट" (५) सकीर्ण जाति "तकधिन तक तकिट" " » 73 ६ " " विचार इस प्रकार प्रगट किये हैं