पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१६८

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  • सङ्गीत विशारद *

१७७ जिन रागों में म नि वर्जित होते हैं उनमें ग प की संगत बहुत प्रिय मालुम होती है। यह उत्तराग प्रधान राग है । विभास में जब धैवत लेकर पंचम पर राग समाप्त होता है तो ओताओं को बड़ा आनन्द आता है। विभास की तरह ही सायकाल का एक राग "रेवा" है किन्तु रेवा में ग वादी है और विभास में ध वादी है। इस भेद से गुणीजन विभास और रेवा को अलग-अलग दिखा देते हैं। इसके अतिरिक्त "विभास" नाम के २ राग और हैं । एक विभास पूर्वी थाट का है और एक मारवा थाट का, किन्तु उपरोक्त विभास भैरव थाट का है अतः उनसे इस विभास का कोई मेल नहीं । ५४-पीलू ग ध नी तीनों सुरन के, कोमल तीवर रूप । गनि वादी संवादि लखि, पीलू राग अनूप ।। राग-पीलू चर्जित--कोई नहीं थाट- काफी आरोह--सारेगमपधप निधपसां जाति--सम्पूर्ण अवरोह--निधपमग, निसा । वादी---ग, सम्बादी नि पकड़--निसागनिमा, पधनि सा । स्वर-तभी लग सकते हैं समय--दिन का तीसरा प्रहर पील राग को सभी पसन्द करते हैं। भैरवी, भीमपलासी गौरी इत्यादि रागों के मिश्रण से इसकी रचना हुई है । अतः बारहों स्वर प्रयोग करने की इस राग में छूट है । तीन स्वरों का प्रयोग प्रायः अवराह में अधिक किया जाता है । ५५-प्रासा प्रोड्व सम्पूरन कहत, आरोहन गनि त्याग । मम वादो सम्बादि तं, सोभित आसा राग ।।

वर्जित--आरोह में गनि

थाट--विलायल आरोह -सा रे म प ध सां जाति-श्रीडव संपूर्ण अवरोह-सांनिधप मगरेसा यादी-म, संवादी सा पकाइ--रेमपध मानिधपमगरे सारेगसा निधसा स्वर-शुद्ध समय-रात्रि का दूसरा प्रहर इसमें सभी शुद्ध म्वरों का प्रयोग होता है। इस राग को अरवी नामक राग से बचाने में मावधानी बरतनी पड़ती है । 'आमा' के अारोह में गनि का प्रयोग अल्प अथवा वर्जित होता है। ५६-पटदीप गा कोमल सम्बाद पस, चढ़ने रिध न लगाय । राग--पासा --