पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१६१

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  • सङ्गीत विशारद *

वादी-म, , राग-सिंदूरा वर्जित स्वर-पारोह में ग नि थाट-काफी नारोह-मा, रेमप, ध सा। जाति-औडुव-सम्पूर्ण अमरोह-सा, निधपमग रेमग रेसा सम्बादीप पकड़-सा, रेमप, ध, सा, निधपमग रेसा स्वर-नि ग कोमल समय-मायफाल राग को सैंधवी भी कहते हैं। कोई-कोई गुणीजन निपाट के वर्जन पर मतभेद रग्नते हैं, अत आरोह मे कभी-कभी कोमल नि लेलिया जाता है। राग विवोध में इसे "सिधोडा" ऐसा नाम दिया है। ३६-कालिंगड़ा रिध कोमल कर गाहये, भैरव थाट प्रमान । सप सम्बादी वादि सों, कालिगडा पहचान ॥ राग-कालिंगड़ा थाट-भैरव जाति-मम्पूर्ण वर्जित सर-कोई नहीं आरोह-मारेगम, पधुनिसा अवरोह-सानिधुप, मगरेसा पकड़-धूप, गमग, नि सारंग, म, समय-रात्रि का अन्तिम प्रहर वादी-प, सम्वादी सा स्वर-रेघ कोमल कालिगडा गाते समय रेध स्वरों पर आन्दोलन अधिक देने से भैरव की झलक आने लगती है । इसीलिये इसमे पचम वादी ओर पडज सम्यादी मानते हैं, क्योंकि धैवत वादी होगा तो उस पर आन्दोलन भी अधिक होंगे। परज राग से भी इसकी प्रकृति बहुत कुछ मिलती-जुलती है। ४०-वहार चढत रि उतरत धा घरजि, कोमल कर गन्धार । दोउ निपाद, सवाद मस, पाडव राग बहार ।। राग-बहार वर्जित स्वर-आरोह मे रे, अवरोह मेध थाद-काफी आरोह-सा, गम, पगम, नि धनि सा | जाति-पाडव-पाडव अवरोह-सा, निपमप, गम, रेसा । वादी-म, सम्वादी सा पकड-मपगुम, ध, निसा स्वर- कोमल, निपाद दोनों समय-मध्यरात्रि विचार इस प्रशर प्रगट किये हैं.