पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१५५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१६४

  • सनीत विशारद

. २५-छायानट जवहिं थाट कल्यान में, दोनों मध्यम पेखि । परि वाटी संवादि सों, छायानट को देखि ॥ राग-छायानट थाट-कल्याण जाति-सम्पूर्ण वाढी-प, मम्बादी-रे स्वर-दोनों मध्यम वर्जित स्वर-कोई नहीं। श्रारोह-सा रे ग म प नि ध सा। अवरोह-मा नि ध प मप वप गम रेमा । पकड-प, रे, गमप, मग, मरेसा । समय-रात्रि का प्रथम प्रहर । छायानट में दोनों मध्यम लिये जा सकते हैं, किन्तु तोत्र मध्यम जब लिया जावे, तो केवल मपधप करके ही लेना चाहिए। शुद्ध मध्यम आरोह अवरोह दोनों में लिया जाता है । पचम और रिपम की सगत इसमें भली मालुम होती है। ग नि इन दोनों स्वरों को कम से अवरोह और आरोह में वक्र किया जाता है। अवरोह मे कभी-कभी कोमल निपाद भी विवादी स्वर के नाते लिया जाता है । २६-कामोद कल्याणहिं के मेल में, दोनों मध्यम लाय । परि वादी सम्बादि कर, तब कामोद सुहाय ॥ राग-कामोद थाट-कल्याण जाति-सम्पूर्ण वादी -प, मम्वादी रे स्वर-दोना मध्यम वर्जित स्वर-कोई नहीं आरोह--सारे पम पध पनिध सा अवरोह–सानिध प मपधप,गमरेसा पकड-रे, प, मैप, यप, गमप, गमरेसा समय---रात्रि प्रथम प्रहर इस राग में गधार और निपाट स्वर वक्रगति से लगते हैं। तथा यह दोनों स्वर इसमें दुर्वल रहने चाहिये। निपाद तो बहुत ही कम लगता है । कभी-कभी अवरोह में कोमल निपाद का प्रयोग विवादी स्वर के रूप में किया जाता है । आरोही में तीन मध्यम का बहुत कमी के माथ प्रयोग किया जाता है। रिपम मे पचम पर जाने मे कामोद स्पष्ट दिसाई देने लगता है। २७-वसन्त रिध कोमल, संवाद सम, मध्यम के दोउ रूप । प्रारोही पंचम परजि राग बसन्त अनुप ॥ विचार हम प्रकार प्रगट दिये हैं.