- सङ्गीत विशारद *
१५६ १३-भीमपलासो जब काफी के मेल में, चढ़ते रिध को त्याग । गनि कोमल, संवाद मस, भीमपलासी राग। राग-भीमपलासी थाट-काफी जाति-औडव सम्पूर्ण वादी-म, सम्वादी-सा स्वर-ग नि कोमल, बाकी शुद्ध वर्जित स्वर-आरोह में रे, ध आरोह-निसागम, प, नि सां । अवरोह-सांनिधपम, गरेसा पकड़-निसाम, मग, पम, ग मगरेसा समय-दिन का तीसरा प्रहर इस राग के आरोह में रिषभ और धैवत दुर्बल रहते हैं, अर्थात् आरोह में इनका प्रयोग कम रहता है और सा, म, प इन स्वरों का प्राबल्य रहता है । इस राग को गाते समय धनाश्री राग से बचाना चाहिए जो कि काफी थाट का है। किन्तु प ग म ग इन स्वर संगतियों से धनाश्री और भीमपलासी अलग-अलग हो जाते हैं। साथ ही इस राग में म वादी और धनाश्री में प वादी दिखाकर भी इनका मिश्रण बचाया जासकता है। १४-बागेश्री गनि कोमल संवाद मस, आरोही रिप काट । मधुर राग बागेसरी, लखि काफी के थाट ॥ राग-बागेश्री थाट -काफी जाति-औड़व सम्पूर्ण वादी-म, सम्वादी-सा स्वर-गनि कोमल, बाकी शुद्ध वर्जित स्वर-आरोह में, रेप आरोह -सा म ग म ध नि सां अवरोह-सां नि ध मग मग रे सा पकड़-सा, निधसा, मधनिध, म, गरे, सा समय- मध्यरात्रि मध्यम, धैवत और निषाद स्वरों की संगत इस राग की शोभा बढ़ाती है । बागेश्री के आरोह मे रिषभ स्वर का प्रयोग बहुत कम होता है या बिल्कुल छोड़ दिया जाता है । इस राग में पंचम स्वर के प्रयोग पर मतभेद पाया जाता है। कोई-कोई गुणीजन पंचम को विल्कुल वर्जित रखते हैं और कोई-कोई पंचम को अवरोह में लेना स्वीकार करते हैं, एवं कोई-कोई पंचम स्वर को आरोह-अवरोह दोनों में लेते हैं। इसीलिये इस राग की जाति में