पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१३०

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  • सङ्गीत विशारद *

१३६ तान-स्वरों का वह समूह जिसके द्वारा राग विस्तार किया जाता है "तान" कहते हैं, जैसे-सा रे ग म, गरे सा या सां नि ध प म ग रे सा इत्यादि । स्वरों को तानने या फैलाने से ही 'तान' शब्द की उत्पत्ति हुई है । तानों के कई प्रकार हैं जो आगे बताये जाते हैं। शुद्धतान-जिस तान में स्वरों का सिलसिला एक सा हो और आरोह-अवरोह सीधा-सीधा हो जैसे सा रे ग म प ध नि सां, सां नि ध प म ग रे सा। इसे ही सपाटतान भी कहते हैं। कूटतान -जिस तान के स्वरों में क्रम या सिलसिला न हो उसे कूटतान कहेंगे, यह हमेशा टेड़ी-मेढ़ी चलती है, जैसे-सारे गरे धप मप रेग मप धसां धप इत्यादि । मिश्रतान- शुद्धतान और कूटतान इन दोनों का जिसमें मिलाप या मिश्रण हो उसे मिश्र तान कहेंगे, जैसे-प ध नि सां ग म प ध ध प म प ग म रे सा । इसमें कूटतान और शुद्ध तान दोनों मिली हुई हैं। खटके की तान- -स्वरों पर धक्का लगाते हुए तान ली जावे तो उसे खटके की तान कहेंगे। झटके की तान जब तान दूनी चाल में जारही हो और यकायक बीच में चौगुन की चाल में जाने लगे, उसे झटके की तान कहेंगे। जैसे- सा रे ग म प ध नि सां 'नि ध प म, सारे गम पधनिसां निधपम गरेसानि । वक्र तान-कूटतान के ही समान होती है, वक्र का अर्थ है टेढा, यानी जिसकी चाल सीधी न हो, जिसमें स्वरों का कोई क्रम न हो। अचरक तान जिस तान में प्रत्येक दो स्वर एक से बोले जाय, जैसे सासा रेरे गग मम पप धध । इसे अचरक की तान कहेंगे। सरोक तान-जिस तान में चार-चार स्वर एक साथ सिलसिलेबार कहे जांय, जैसे-सारेगम रेगमप गमपध मपधनि, इसे सरोक तान कहेंगे। लडंत तान—जिस तान में सीधी आड़ी कई प्रकार की लय मिली हुई हों, उसे लड़न्त तान कहते हैं, जैसे-निसा निसा रे रे रे रे निध निध सा सा सा सा इत्यादि । इन तानों में गायक और वादक की लड़न्त, बड़ी मजेदार होती है । सपाट तान-जिस तान में क्रमानुसार स्वर तेजी के साथ जाते हों उसे सपाटतान कहते हैं, उदाहरणार्थ-मपधनि सारेगम पधनिसां रेंगंमपं ।