पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१२५

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  • सङ्गीत विशारद *

सरगम किसी राग के स्वरों को लेकर उन्हें तालबद्व करके जब गाया जाता है, उसे 'सरगम' गीत कहते हैं । सरगम गीत भिन्न-भिन्न राग व तालों के होते हैं। सरगम गाने से विद्या- र्थियो को स्वर ज्ञान ए रागज्ञान में बहुत सहायता मिलती है। रागमाला जब किसी एक गीत में कई रागों का वर्णन आता है और उस गीत की एक-एक लाइन में एक-एक राग के स्वर लगते जाते हैं और उम राग का नाम भी आता जाता है, ऐसी रचना को 'रागमाला' कहते हैं लक्षण गीत कोई गीत जब किसी राग में गाया गया हो और उम गीत के शब्दों में उस राग के वादी, मम्बादी या वर्जित स्वरों का वर्णन किया गया हो, उमे लक्षण गीत कहते हैं। लक्षण गीत से राग सम्बन्धी अनेक बाते सरलता पूर्वक याद हो जाती हैं। भजन-गीत जिस प्रकार उर्दू भाषा के शन्दी मे गजले तैयार होती हैं, उसी प्रकार हिन्दी शब्दावली से भजन और गीतों की रचना होती है। ईश्वर स्तुति या भगवान की लीला का वर्णन भजनों में किया जाता है । भजन को किसी १ राग में बाधकर भी गाते हैं, और ऐसे भी भजन है जो किसी विशेप राग में न होकर मिश्रित राग स्वरों द्वारा तैयार हुए हैं। भजन अधिकतर कहरवा, दादरा, धुमाली, रूपक एव तीनताल मे गाये जाते हैं। कीर्तन भगवान राम-कृष्ण के गुणानुवाद झाम, करताल व मृग तवला इत्यादि के साथ उच्च स्वरों मे मिलकर जव गाते हैं, उन्हें कीर्तन कहते हैं । गीत 1 ईश्वर प्रार्थना या भगवान की लीला सम्बन्धी पढ़ी को छोडकर जो साहित्यिक रचनाय ऐमी होती हैं कि वे किसी ताल मे वाधकर गाई जा सके, उन्हें 'गीत' कहते हैं । इनमे भार की प्रधानता रहती है। गीतों में शृङ्गार और करण रस अधिक पाया जाता है। गीतों में किसी प्रकार का घर विस्तार या तानी का प्रयोग नहीं होता । रेडियो और फिल्मों द्वारा गीत एव भजनों का यथेष्ट प्रचार हुआ है। कजली (कजरी) कजली गीतों में वर्षा ऋतु का वर्णन, विरह वर्णन, राधाकृष्ण की लीलाओं का वर्णन अधिकतर मिलता है। केजरी की प्रकृति शुद्र है। शृङ्गार-रस इसमे प्रधान है। मिर्जापुर और बनारस मे कजरी गाने का प्रचार अधिक पाया जाता है । अपनाचा स.in