पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१२१

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  • सङ्गीत विशारद *

मिलते हैं । सडार वाणी को सस्कृत में "भिन्नागीति" कहा गया है* | इस वाणी में स्वर के भिन्न-भिन्न टुकडे करके गाते हैं। सम्भवत इसीलिये सस्कृत मे इमको 'भिन्ना' कहा जाता है । स्वर के सड-सड होने के कारण हिन्दी में इसको सडार वाणी कहा गया है । दोनों शब्दो का मूल तात्पर्य एक ही है । घर को सरल भाव में प्रगट न करके कुटिल भाव मे सड-सड करके प्रकट करना ही खडार वाणी की विशेषता है । इस कृत्य मे स्वर की मधुरता का नाश नहीं होता, अपितु सूक्ष्म गमक की सहायता मे स्वर को आन्दोलित करने पर उसमे मधुरता की और भी वृद्धि होती है, इसलिये उत्तम गुणी गमक की सहायता से सडार वाणी गाते थे। यन्त्र सङ्गीत में वीणा द्वारा सण्डार वाणी का सैनी लोग विविध प्रकार से मध्यलय गमक व जोड़ मे उपयोग करते हैं । शुद्व वाणी की प्रधानता रवाव द्वारा दिसाई जाती थी, क्योंकि रवाव का स्वर सरल होता है। इसमें विलम्बित, मध्य और द्रुत ये विविध पालाप बापूवी दिसाये जा सकते हैं। वाणी का रहस्य जानने वाले गायक आजकल शायद ही कोई हों। ध्रुपद गायन यो प्रचलित हुए ५०० वर्ष से अधिक हो गये, किन्तु इवर लगभग १५० वर्ष से ध्रुपद- गायकी का प्रचार कम होगया है और ख्याल गायन का प्रचार अधिक होगया है, इतना होते हुए भी सङ्गीतकला मर्मज्ञो मे ध्रुपद गायकी को अब भी श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता है। ख्याल फारसी भाषा में रयाल का अर्थ है, विचार या कल्पना । राग के नियमों का पालन करते हुए अपनी इच्छा या कल्पना से विविध आलाप तानों का विस्तार करते हुए, एकताल, त्रिताल, झूमरा आडा चौताल इत्यादि तालों में गाते हैं। रयालों के गीतों में शृङ्गार रस का प्रयोग अधिक पाया जाता है। रयाल गायकी में जलद तान, गिटकरी इत्यादि का प्रयोग भी शोभा देता है और स्वर वैचित्र्य तथा चमत्कार पैदा करने के लिये रयालों में तरह-तरह की ताने ली जाती हैं। ख्याल गायन में त्रुपद जैसी गभीरता और भक्तिरस की शुद्धता नहीं पाई जाती । ग्याल • प्रकार के होते हैं (१) जो विलम्बित लय में गाये जाते हैं, उन्हें बहुधा बडे रयाल कहते हैं और (२) जो द्रुत लय मे गाये जाते हैं उन्हे छोटे रयाल कहते हैं।

  • गीतय. पच शुद्धाद्या भिन्ना गौटी च वेसरा ।

साधारणीति शुद्धा स्यादवकललिते स्वरै ॥ मिन्ना सूक्ष्मै स्वरैर्वन पुरैर्गमकैर्युता । गाटैस्त्रिस्थानगमदैवहाटीललितै असटितम्थिति स्थानत्रये गौडी मता सताम् | उहाटी कपितैर्मन्दै तद्रुततरे स्वरे ॥ हकारोकारयोगेन हन्यस्ते चिनुके मवेत् । वेग पनि स्वरैर्वर्णचनुप्फेऽप्यतिरकित ॥ वेगस्वरा रागगीतिमरा चोच्यते उधै ॥ -'सगीतरत्नाकर स्वरै ॥ MMमामाका नाया। AL