१०६ राग में वादी स्वर का महत्व "प्रयोगे बहुलः स्वर वादी राजाऽत्र गीयते"। में राजा शास्त्रों की उक्त व्याख्या के अनुसार वादी स्वर की स्थिति रागरूपी राज्य के समान मानी गई है। वादी स्वर का प्रयोग राग में अन्य स्वरों की अपेक्षा अधिक होता है । वादी स्वर पर ही प्रत्येक राग की विशेषता निर्भर रहती है। इसी कारण वादी स्वर को जीव या अन्शस्वर भी कहते है। वादी स्वर का प्रयोग राग में कुशल गायक भिन्न-भिन्न प्रकारों से करते हैं। राग में वादी स्वर को बार-बार दिखाना, वादी स्वर से ही राग का आरम्भ करना, वादी स्वर पर ही राग समाप्त करना, तथा राग के प्रमुख भागों में वादी स्वर को बार-बार भिन्न-भिन्न स्वरों के साथ दिखाना तथा कभी-कभी वादी स्वर को बड़ी देर तक लम्बा करके गाना, इत्यादि विविध ढङ्गों से वादी स्वर का प्रदर्शन रागों में किया जाता है। उदाहरणार्थ विहाग में गन्धार वादी स्वर है, तो उसका प्रयोग इस प्रकार देखने में आयेगाः- ग, रेसा, निसाग, मग, प, गमग, निप, गमग, निसागमध पगमग, सा, इत्यादि । इसी प्रकार मारवा में वादी स्वर कोमल रे का प्रयोग देखियेः- निरेऽऽसा, निरेऽऽ, गरेऽs, गमगरे, मंगरेऽऽऽसा, इत्यादि । यहां पर कोमल रिषभ को लम्बा खींचकर उसका वादित्व कितनी सुन्दरता से प्रकट किया गया है । वादी स्वर के प्रयोग से रागों के गाने का समय भी जानने में सुविधा मिलती है । जब किसी राग में सप्तक के पूर्वाङ्ग में से कोई स्वर वादी होता है, तो उसे पूर्वाङ्ग वादी राग कहते हैं और उसके गाने का समय प्रायः दिन रात के पूर्वाङ्ग समय अर्थात् दिन के १२ बजे से रात्रि के १२ बजे तक के बीच होता है जैसे भीमपलासी, पीलू , पूर्वी, मारवा, यमन, भूपाली, बागेश्री इत्यादि रागो में पूर्वाङ्ग वादी स्वर होने के कारण ये राग उपरोक्त समय (पूर्वाङ्ग समय ) में ही गाये बजाये जाते हैं। इसी प्रकार किसी राग में जब कोई वादी स्वर सप्तक के उत्तराङ्ग में से होता है तो वह दिन रात के उत्तराङ्ग भाग अर्थात् रात्रि के १२ बजे से दिन के ५२ बजे तक के समय में से किसी समय का राग होता है, जैसे:-भैरव, भैरवी, बिलावल, कालिङ्गड़ा, सोहनी, आसावरी इत्यादि । वादी स्वर की एक विशेषता यह और है कि किसी राग में केवल वादी स्वर बदल देने से ही राग भी बदल जाता है, चाहे उन रागों में लगने वाले स्वर लगभग एक से ही हों । जैसे भीमपलासी और धनाश्री यह दोनों राग काफी थाट से उत्पन्न हुए हैं और दोनों में ही ग नि कोमल प्रयुक्त होते हैं, किन्तु इन रागों में केवल वादी स्वरके उलटफेर से ही राग परिवर्तित होजाता है। जब भीमपलासी गाया जायगा तो उसमें मध्यम स्वर अधिक दिखाया जायगा क्योंकि म स्वर भीमपलासी में वादी है और जब धनाश्री गाया जायगा तो पञ्चम स्वर अधिक दिखाया जायगा; क्योंकि धनाश्री में प, वादी है। इससे स्पष्ट होजाता है कि केवल वादी स्वर को बदल देने से ही भीमपलासी से धनाश्री राग बदल गया।
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