पृष्ठ:संगीत-परिचय भाग २.djvu/६४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ७३ ) पाठ १८ शब्द श्री गुरु ग्रंथ साहब राग असावरी राम सुमिर, राम सुमिर, एही तेरो काज ॥ टेक। माया को संग त्याग, हरिजूकी सरन लान । जगत सुख मान मिथ्या, भूठौ सव साज है ॥ १॥ सुपने ज्यों धन पिछान, कोहपर करत मान । नास्की मीत बसुधाको राज है ॥ २॥ 'नानक, जन कहत वात, विनासि है तेरो गात । हिन दिन करि गयो काल्ह, तैसे जात अाज है ॥३॥ ताल दादरा ग्थाई . X प प म म ग ध सु मि र INE रा - म प प