पृष्ठ:संगीत-परिचय भाग २.djvu/४६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(५३ )
भजन सूरदास

राग भैरवी

ताल तीन

सुनेरी मैंने निर्बल के बल राम।
पिछली साख भरूं संतन की,
आड़े सँवारे काम ॥ १॥

जब लगि गज बल अपनो वरत्यो,

नेक सरयो नहिं काम।
निर्बल ह्वै बलराम पुकारयो,
आये आधे नाम ||२ ||
द्रुपद-सुता निरबल भई ता दिन,
तजि आये निज धाम।
दुश्शासन की भुजा चकित भई,
वसनरूप भये स्याम ||३||
अप-बल तप-बल और बाहु-बल,
चौथो है बल दाम।
'सूर' किसोर- कृपातें सब बल,
हारे को हरि-नाम ॥४॥