दो शब्द
आज से पच्चीस वर्ष पूर्व जब मैंने संगीत- शिक्षण का कार्य प्रारम्भ किया था, तब से लेकर अब तक लगातार लड़के-लड़कियों के विभिन्न स्कूलों, कालिजों तथा अन्य संस्थाओं में कार्य करते हुये जो-जो कठिनाइयाँ मेरे सामने आती रही हैं, उनमें से एक मुख्य कठिनाई यह थी कि संगीत की ऐसी पुस्तकों का सर्वथा अभाव था, जिनके द्वारा संगीत में प्रवेश करने वाले अल्पायु के छात्र-छात्राओं को संगीत-शास्त्र सम्बन्धी प्रारम्भिक तथा आवश्यक ज्ञान दिया जा सके।
हर्ष की बात है कि इधर कई वर्षों से हमारी शिक्षा-संस्थाओं एवं विश्वविद्यालयों ने संगीत की ओर भी ध्यान देना आरम्भ किया है और अपने पाठ्यक्रम में संगीत को भी स्थान देकर इसके महत्व को स्वीकार किया है। इसी के परिणाम स्वरूप अब संगीत के प्रति लोगों का आकर्षण दिन प्रति दिन बढ़ता ही जा रहा है। इसी सिलसिले में पंजाब के शिक्षा विभाग ने भी अपने यहाँ के नये पाठ्यक्रम में लड़कियों के लिये संगीत का ज्ञान छटी श्रेणी से आवश्यक कर दिया है। परन्तु अभी तक भी संगीत की ऐसी पुस्तकें नहीं हैं, जो शिक्षा विभाग के पाठ्य- क्रम के अनुकूल हों और छात्र-छात्राओं की आवश्यकता तथा विश्व-विद्यालय के स्लेवस के अनुसार तैयार की गई हों। इसी कमी को पूरा करने के लिये 'संगीत-परिचय' की रचना की गई है।