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अन्तरा
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( ताल तीन मात्रा १६)
भजन कबीर
- मन तोहे कहि विधि मैं समझाऊँ।
- सोना होय तो सुहाग मँगाऊँ , वंक नाल रस लाऊँ ।
- ज्ञान शब्द की फूंक चलाऊं, पानी कर पिंघलाऊँ ॥
- घोड़ा होय तो लगाम लगाऊँ, ऊपर जीन कसाऊं।
- होय सवार तेरे पर बैठूं , चाबुक देके चलाऊं ॥
- हाथी होय तो जंजीर गढ़ाऊ चारों पैर बंधाऊ।
- होय महावत तेरे पर बैठूं ,अंकुश लेके चलाऊं ॥
- लोहा होय तो अहरण मंगाऊ, ऊपर धुवन धुवाऊं।
- धूवन की घनघोर मचाऊं, जंतर तार खिचाऊं ॥
- ज्ञानी न होय ज्ञान सिखलाऊं, सत्य की राह चलाऊं।
- कहत 'कवीर' सुनों भई साधो, अमरा पुर पहुँचाऊं ॥