पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/९१

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( ८१ ) १६१-कई-एक मनुष्येतर प्राणिवाचक संज्ञाएँ केवल पुल्लिग या । स्त्रीलिग होती हैं; जैसे, पुल्लिग-भेड़िया, चीता, पक्षी, उल्लू, कछुआ, खटमल । • स्त्रीलिंग---गिलहरी, चील, कोयल, तितली, मक्खी, जोंक । १६२--अप्राणिवाचक संज्ञाओं से जोड़े का बोध नहीं होता; इसलिये इनका लिंग इनके रूप से जाना जाता है। अप्राणिवाचक संज्ञाओं का लिंग नीचे लिखे नियमों के अनुसार निश्चित किया जाता है: हिंदी संज्ञाएँ। । पुलिंग (१) कई एक अकारांत संज्ञाएँ; जैसे धन, बल, अनाज, घर, सिर, गॉव । ( २ ) ऊनवाचक संज्ञाओं को छोड़ शेष अकारांत संज्ञाएँ; जैसे कपड़ा, पैसा, गन्ना, आटा, माथा । (३) जिन भाववाचक संज्ञाओ के अंत में आव, पन या पा होता है; जैसे, बहाव, लड़कपन, बुढ़ापा । (४) क्रियार्थक संज्ञाएँ; जैसे, आना, जाना, गाना, खाना, तैरना सोना ।। (५) कृदंत की अनंत संज्ञाएँ, जैसे, मिलान, लगान, महान, पिसान, खान-पान, उठान । अपवाद-पहचान, उड़ान, मुस्क्यान । स्त्रीलिंग । (१) ईकारांत संज्ञाएँ; जैसे, चिट्ठी, नाली, खेती, मिट्टी, टोपी, , नदी । अप०-पानी, घी, जी, दही, सही, मोती। (२) जिनके अंत में आई हो; जैसे, भलाई, बुराई, ऊँचाई, ' पिसाई, लिखाई, बुनाई ।। ( ३ ) ऊनवाचक याकारांत संज्ञाएँ; जैसे, खटिया, डिबिया, फुड़िया पुड़िया, ठिलिया, डलिया ।