पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/६७

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| ( ५७ ) भर-इसका उपयोग कभी 'ही' के समान और कभी भी के समान होता है; जैसे, मेरे पास कपड़ा भर है। गॉव भर में बात फैल गई । काल- वाचक और स्थानवाचक शब्दों के साथ इसका उपयोग संबंध सूचक के समान होता है; जैसे नौकर रात भर जागा । वह गॉव भर फिरा ) परि- माणवाचक शब्दों के साथ यह प्रत्यय के रूप में आकर उन्हें विशेषण बनाता है; जैसे, सेर भर अनाज, टोकरी भर फूल, मुट्ठी भर चना । तक-यह भर के समान शब्द और विभक्ति के बीच में आता है; जैसे, “पिता तक से कुछ नहीं माँगता” | उसने भाई तक को कुछ नही दिया । इसका उपयोग संबंध सूचक के समान भी होता है; जैसे, साधु मंदिर तक गया । वह आधी रात तक घूमता रहा। भर के समान यह अधिकता के अथ में भी आती है; जैसे, राजा तक यह काम करते हैं । मात्र---इसका उपयोग बहुधा शब्द और विभक्ति के बीच में ही और भर” के समान होता है; जैसे, नाम मात्र के लिये प्राणी मात्र की जीवन । कालवाचक और परिमाणवाचक शब्दों के साथ इसका प्रयोग वहुधा प्रत्यय के समान होता है; जैसे, तिलमात्र संदेह । क्षण मात्र ठहरो । लेश-मात्र बल । एकमात्र संतान । कहाँ कहाँ--इसका प्रयोग महा-अंतर के अर्थ में समुच्चयबोधक के . समान होता है; “कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगा तेली । कहें कुंभज, कह सिधु अपारा ।” । कहीं-अनिश्चित स्थान के अर्थ के सिवा यह अधिक और कदाचित् के अर्थ में भी आता है; जैसे, मुझसे, कहीं सुखी हैं। कहीं कोई हमें देख न ले। कहीं-कहीं विरोध सूचित करते हैं; जैसे, कहीं धूप, कहीं छाया । कही आनंद, कहीं शोक । क्योकर-इसका अर्थ “कैसे है; “जैसे” यह काम क्योकर होगा ? मनुष्य क्योकर जीता है ? योही---इसका अर्थ अकारण भी है; जैसे, लड़का यही फिर करता है। आप कैसे आए ? यो ही । ।