पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/६६

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( ५६ ) नहीं---यह क्रिया-विशेषण की क्रिया की विशेषता भी बताता है और प्रश्न के उत्तर में पूरे वाक्य के बदले भी आता है, जैसे, मैं नहीं जाऊँगा प्रश्न--क्या तुम जाओगे ? उत्तर--नहीं ।। न-इसका अर्थ 'नहीं' के समान है, पर यह प्रश्न के उत्तर में नहीं बीच मे निश्चय के लिये आता है; जैसे, कोई न कोई, कुछ न कुछ, एक न एक, कभी न कभी, कहीं न कहीं । | इससे प्रश्न और आग्रह भी सूचित होता है; जैसे, तुम चलोगे न ? वह जाता है न ? चलिए न । तुम उसे बुलाओ न ।। | तो-इससे निश्चय या आग्रह सूचित होता है। जब इसका प्रयोग संज्ञा या सर्वनाम के साथ होता है, तब वह उसकी विभक्ति के पश्चात् अाता है; जैसे, लड़के ने तो कहा था। उसको तो बुलाओ । चलो तो । 'यदि के साथ यह दूसरे वाक्य मे समुच्चय-बोधक होकर आता है; जैसे, यदि तुम आओगे तो मै आऊँगा ।। ही---यह क्रिया विशेषण शब्द और प्रत्यय के बीच में आता है; जैसे, आप ही ने यह कहा था । लड़की वह काम करेगा ही । कुछ सर्व- नामों और क्रिया-विशेषणों में यह प्रत्यय के समान होता है। जैसे, हम + ही = हमीं । तुम -- ही = तुम्हीं यह + ही = यही वह + ही = वही सब + ही = सभी कब-4-ही = कभी तब ही = तभी | अब +ही = अभी कहाँ + ही == कही वहाँ-+ही = वहीं यहाँ + ही = यहीं । न + ही = नहीं। भी---यह 'तो' के समान विभक्ति के पश्चात् आता है; जैसे हमको भी कुछ दो "कोई और एक" के साथ ही के अर्थ में आता है; जैसे, कोई भी नहीं आया । एक भी आदमी नहीं गया । कभी-कभी इससे

  • ता के समान अाग्रह का बोध होता है; जैसे, आओ भी । तुम उठोगे भी है