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विशेषण हैं क्योंकि वे क्रियाओं का स्थान;( अर्थात् 'कहाँ' का उत्तर ) | सूचित करते है ।। कंई एक स्थान-वाचक क्रिया-विशेषणों से दिशा ( अर्थात् “किधर” का उत्तर ) सूचित होता है; जैसे, चोर उधर भागा । जिधर तुम गए थे, उधर मोहन भी गया था । गेंद दूर जायगी ।। गाड़ी धीरे चलती है। कुत्ता अचानक झपटा ।। लड़का ध्यानपूर्वक पढ़ता है । सिपाही पैदल जावेगा । ११४-उपर्युक्त वाक्यों में रेखांकित शब्द क्रियाओं की रीति ( अर्थात् "कैसे' का उत्तर ) प्रकट करते हैं; इसलिये उन्हे रीतिवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं । रीतिवाचक किया-विशेषण से नीचे लिखे अर्थ भी पाए जाते हैं- निश्चय--जैसे, नौकर अवश्य आवेगा । राम सचमुच जा रहा है। लड़के ने निःसंदेह चोरी की है। | अनिश्चय----जैसे, आज कदाचित् पानी गिरेगा । हम इस विषय में यथा-संभव परिश्रम करेगे । शायद चिट्टी आवे । निषेध---जैसे, मै 'न जाऊँगा । वह नही आया । मत जाओ । कारण--जैसे, वह इसलिये आया है कि आप से मिले। तुम क्यो जाते हो ? आप किस लिये ऐसा कहते हैं ? अनुकरण-जैसे, वह गटगट दूध पी गया। धड़ाधड़ धार रुपयों की बही है। उसने लड़के को तड़तड़ मार दिया ? ' ११५-तो, ही, भी, भर, तक और मात्र एक प्रकार के रीति- वाचक क्रिया-विशेषण हैं; पर इनका उपयोग समुच्चय-बोधक और विस्म- यादि-बधिक को छोड़ शेष किसी भी शब्द-भेद के साथ महत्व देने के लिये होता है; इसलिये इन्हें अवधारण-बोधक क्रिया विशेषण कहते हैं । उदाहरण-

- मै तो जाता हूँ। मैं जाता तो हूँ। मै ही जाऊँगा । मैं जाऊँगां ही है।

वह भी आवेराः । वह आवेगा भी । हम आज भर जायेंगे । राजा तक