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( ३६ ) सुननेवाले के लिये “तू’’ का उपयोग करना निरादर समझा जाता | है; इसलिये अपने से छोटे मनुष्य के लिए भी तुम का उपयोग किया जाता है । “तू बहुधा ईश्वर, छोटे बच्चे और घनिष्ठ मित्र के लिये आता है; जैसे, हे ईश्वर ! तू मेरी रक्षा कर । बच्चे इधर आ । मित्र, तु कल क्यो नहीं आया ? “हम के साथ तु” के बदले बहुधा तुम” लाया जाता है, जैसे इम और तुम वहाँ चलेगे । आप' का उपयोग बड़ों के आदर के लिये "तुम" के बदले होता है, पर शिक्षित लोग बहुधा बराबरीवालों से भी "तुम" के बदले **आप' का उपयोग करते हैं । राजा महाराजाओं के लिथे “श्रीमान् (हुजूर) का उपयोग किया जाता है; जैसे श्रीमान् का , आगमन कब हुवा ? श्रीमान् का स्वास्थ्य कैसा है ? यह मेरी पुस्तक है ।। वह उसकी कलम है ? ये मेरे मित्र हैं । वे मेरे भाई हैं । राजा ( मुनि का परिचय कराते हुए-अप मेरे गुरु हैं। मालवीयजी देश के नेता हैं; आप ( वे ) बड़े दयालु हैं । ८८-ऊपर के वाक्यो में यह” “ये, 'वह', और आप ऐसे सर्वनाम हैं जो पास वा दूर की किसी वस्तु की ओर संकेत करते हैं। इन सर्वनामो को निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं । “वह और “यह एक वस्तु के लिये और ये अनेक वस्तुओं के लिये अथवा आदर के लिये आते हैं । “यह बहुधा अगले पिछले वाक्य के बदले भी आता है, जैसे, मै यह चाहता हूँ कि आप वहाँ जायें। वे सब आएँगे, यह निश्चित नही । पहले कही हुई दो संज्ञाओं में से पहली के लिये वह और पिछली के लिये यह आता है, दुर्जन और सूजन में यह अंतर है कि वह मिलने पर दुःख देता है और यह बिछुड़ने पर । शरीर और आत्मा मनुश्य देह के भाग हैं, वह अनित्य है और ये ह नित्य । | ८६----आप” का उपयोग एक ही मनुस्य के अंदर के लिये होता