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' ८६-ऊपर लिखे वाक्य में रेखांकित शब्द सर्वनाम हैं, क्योकि । ये संज्ञाओं के बदले में आये हैं । सर्वनाम के उपयोग से संज्ञा को बार बार नहीं कहना पड़ता । यदि पहले वाक्य में मै” का उपयोग न किया जाय तो वाक्य को इस प्रकार लिखना पड़ता–राम ने कहा कि राम जायगा | दूसरे वाक्य में “तुम' न लाया जाता तो वाक्य इस प्रकार होता--मोहन ने गोपाल से पूछा कि गोपाल कब जायगा ? ये वाक्य न तो स्पष्ट ही, हैं और न कर्ण-मधुर हीं। ८७--ऊपर के वाक्य में 'मैं' और 'इम बोलनेवालों के नामों के बदले और "तू”, “तुम' और 'आप सुननेवालो के नामों के बदले आए हैं । जो सर्वनाम बोलनेवाले अथवा सुननेवाले के नाम के बदले अंता है उसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं । बोलनेवाले के नाम के बदले आनेवाले मै” और “इम” सर्वनामो को उत्तम पुरुष और सुननेवाले के नाम के बदले आनेवाले तू तुम” और “आप” सर्व|| नामो को मध्यम पुरुप कहते हैं। इन्हें छोड़कर शेष सर्वनाम अन्य पुरुष कहलाते हैं । सब संज्ञाएँ भी अन्य पुरुष में रहती हैं। जब बोलनेवाला ( वक्ता ) अपने विषय में नम्रता से बोलता है तब वह "मै" का उपयोग करता है, जैसे मैं इसके विषय में कुछ नहीं जानता। मैं आपसे फिर कभी निवेदन करूंगा। कभी-कभी वक्ता अपने विषय में बोलने के लिये “हम” का उपयोग कर देता है, जैसे, हम यह बात नहीं जाते। हम उनके यहाँ कभी नहीं गए । संपादक, लेखक और बड़े अधिकारी अपने लिये बहुधा “हम” का उपयोग करते हैं; जैसे, हम इस बात को नहीं मानते । हम यह बात पहले लिख चुके हैं। ' अपने कुटुंब, देश वा मनुष्य जाति के विषय में बोलने के लिये भी वक्ता “हम का उपयोग करता है, जैसे, हम जबलपुर में रहते हैं। हम दूसरो का मुंह ताकते हैं । हम हवा के बिना नहीं जी सकते ।