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लड़का दौड़ता है। लड़का गेंद फेंकता है । कुचा भौंकता है। कुचा हड्डी चबाता है । नौकर आएगा । नौकर चिट्ठी लाएगा । ७६-ऊपरवाले वाक्यो में बाईं ओर दौड़ता है, भौंकता है? और आएगा” ऐसी क्रियाएँ हैं जिनका कार्य उनके कक्षों में ही समाप्त हो जाता है। उनका फल किसी दूसरी वस्तु पर नहीं पड़ता । ऐसी क्रियाओं को जिसके कार्य का फल केवल कर्ता पर पड़ता है, अकर्मक-क्रियाएँ कहते हैं । पर दाहिनी ओर जो क्रियाएँ हैं-“फेकता है चबाता है”, “लाएगा”–उनका कार्य केवल कचओ में ही समाप्त नही होता; उनका फल दूसरी वस्तु पर भी पड़ता है। ‘फेंकता है” क्रिया का कार्य लड़काकर्ता से निकलकर “गेद' संज्ञा पर पड़ता है। इसी प्रकार चबाता है” क्रिया के कार्य का फल “कुत्ता’ फर्चा से निकल हड्डी संज्ञा पर पड़ता है। इस प्रकार की क्रियाएँ जिनके व्या- पार का फुल कच से निकल कर किसी दूसरी वस्तु पर पड़ता है सकर्मक कियाएँ कहलाती हैं। जिस वस्तु पर सकर्मक क्रिया का फल पड़ता है। उसे सूचित करनेवाले शब्द को कर्म कहते हैं। ऊपर के वाक्यों में “फेकता है सकर्मक क्रिया का कर्म गेद और चबाता है सकर्मक क्रिया का कर्म “हड्डी' है । अकर्मक क्रिया के साथ कर्म नहीं आता। ८०-सकर्मक क्रिया का कर्म; कर्ता के समान संज्ञा, ' सर्वनाम वा विशेषण होता है; जैसे, लड़की फूल तोड़ती है। मैं तुम्हें जानता हूँ। भगवान दीन को पालते हैं। कर्ता के साथ कभी-कभी 'ने' चिह्न और कर्म के साथ कभी-कभी "को” चिह्न आता है; जैसे, लड़के ने गेंद फेंकी । कुत्ते ने हड्डी को चबाया मैंने लड़के को देखा या ।। मोहन ने भाई को फल दिया। पिता पुत्र को चित्र दिखाता है । लड़की माँ को कविता सुनाएगी । नौकर गाय को पानी पिलाता था।