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प्रथम संस्करण की भूमिका

यह पुस्तक "हिंदी-व्याकरण" का संक्षिप्त संस्करण है। इसकी रचना का प्रयोजन यह है कि हिंदी और अंगरेजी की उच्च कक्षाओं के विद्यार्थियो को हिंदी व्याकरण की उपयुक्त पाठ्य पुस्तक उपलब्ध हो सके। इस ग्रंथ में संक्षेपतया प्रायः वे सब वयाकरण-विषय रखे गये हैं जो बड़े व्याकरण में है; पर विवाद-ग्रस्त विषय और उनका विवेचन निकाल दिया गया है। मुख्य विषय से संबंध रखनेवाली सूक्ष्म बातें भी इस पुस्तक में नहीं लाई गईं। अपवाद भी यथासंभव कम रखे गए हैं। इस संक्षेप का कारण यह है कि व्याकरण विषयक विस्तृत अथवा सूक्ष्म वाद-विवाद बहुधा अपक्व बुद्धि वाले विद्यार्थियों की योग्यता के बाहर के विषय है। तथापि मूल विषय को विवेचन अधिकांश में रीति से किया गया है कि विद्यार्थियों को नियम कंठ करने के स्थान में विचार करने का अवसरर मिले।

इस विषय की जो दो-चार पुस्तकें इस समय पाठशालाओं में प्रचलित हैं उनके दोषो से इस पुस्तक को मुक्त रखने का भरसक प्रयत्न किया गया है; अर्थात् यह चेष्टा की गई है कि ग्रंथ में विषय की कमी, क्रम का अभाव और भाषा की अस्पष्टता न रहे। इस प्रयत्न में हमें कहाँ तक सफलता प्राप्त हुई है, इसका निर्णय अध्यापक और विद्यार्थी ही कर सकते हैं। यदि कोई सज्जन इस पुस्तक के दोषो की सूचना देगे; तो उस पर धन्यवादपूर्वक विचार किया जायेगा और उसके अनुसार अगले संस्करण में आवश्यक परिवर्तन कर दिया जायेगा ।

कामताप्रसाद गुरु