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अलग-अलग प्राणियो या पदार्थों को नहीं दिया जा सकता, इसलिये समूहवाचक संज्ञा को एक अलग भेद मानते हैं । सोना कीमती धातु है। पानी सर्वत्र नहीं मिलता ।। हवा जीवन के लिये जरूरी है । बंगाल में धान होता है। ७७-ऊपर के वाक्यों में सोना', 'पानी' हवा' और 'धान, ऐसी वस्तुओं के नाम हैं जो केवल राशि वा ढेर के रूप में पाई जाती हैं। राशि वा ढेर के रूप में पाई जानेवाली वस्तु का नाम सूचित करने वाली संज्ञा द्रव्यवाचक-संज्ञा कहलाती है।' द्रव्यवाचक संज्ञा भी एक प्रकार की जातिवाचक संज्ञा है, क्योकि द्रव्यों की भी जातियों होती हैं। इस भेद को अलग मानने का कारण यह है कि द्रव्य के अलग-अलग खंड नही होते और न उनके अलगअलग नाम होते हैं । जब किसी अक्षर या शब्द का उपयोग अक्षर या शब्द के अर्थ में होता है तब वह व्यक्तिवाचक संज्ञा के समान आता है; जैसे अच्छा विशेषण है । लेख में बार बार वहाँ' आया है। कू' में 'अ का मात्रा मिलने से का होता है । उनकी “बाह-वाह' हुई। जब व्यक्तिवाचक संज्ञा का उपयोग विशेष नाम के अनेक व्यक्तियों के लिये अथवा किसी व्यक्ति का असाधारण धर्म सूचित करने के लिये किया जाता है तब व्यक्तिवाचक संज्ञा जातिवाचक हो जाती है; जैसे : भरतखंड में कई चंद्रगुप्त हो गए हैं। राममूर्ति कलियुग के भीम हैं । -यशोदा हमारे घर की लक्ष्मी है । । कुछ जातिवाचक संज्ञाओं का उपयोग व्यक्तिवाचक संज्ञाओं के समान होता है, जैसे पुरी=जगन्नाथ, देवी दुर्गा, संवत्=विक्रमी संवत् । । कभी कभी भाववाचक संज्ञा का उपयोग जातिवाचक संज्ञा के समान होता है; जैसे, हिंदुस्तान में कई पहिनावे प्रचलित हैं। शहर में कई चोरियाँ हुई हैं । संसार में घन सरीखा सुख नही है। ।