पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/२५३

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( १४१ ) आती है; जैसे पूछेसि लोगन काह उछाहू । ज्यो ऑखिन सब देखिए । दे रहो अँगुरी दोउ कानन में। कारक ६-पद्य में संज्ञाभी के साथ भिन्न-भिन्न कारकों में नीचे लिखी विभक्ति का प्रयोग होता है । कर्चा–ने (क्वचित्) रामचरितमानस में इसका प्रयोग नहीं बुला ! कर्म-हिं, घौं कहूँ ।। करण----तें, सों ।। संप्रदान--हिं, की, कई ।। अपादान---त, स । संबंध-फौ, कर, केरा । भेद्य के लिंग और वचन के अनुसार को और केरा में विकार होता है । अधिकरण में, माँ, माहि- मॉझ, महूँ ।। क्रिया की काल-रचना चलना ( अकर्मक क्रिया ) क्रियार्थक संज्ञा-चलना, चलन, चलियो, चलन् । कर्तृवाचक संज्ञा-चलनहार । वर्तमानकालिक कृदंत--चलत, चलतु । भूतकालिक कृदंत--चल्यो । पूर्वकालिक कृदंत-चलि, चलिकै । तात्कालिक कृदंत--चलतईं । अपूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत-चलल, चलतु । पूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत-चलो ।