पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/२५२

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( २४० ) विशेपकाला=कारो, पीला=पोरो, ऊँचा = ॐ चो, नया=नयो, बड़ा = क्ड़ो, सीधा = सीधो, तिरछा = तिरछो । क्रिया---गया = रायो, देख = देखा, जाऊँगा = जाऊँगो, करना= करन, जाना = जान्यो । लिंग । ४-इस विषय में गद्य और पद्य की भाषाओं में विशेष अंतर नह है, स्त्रीलिंग बनाने में है और इनि प्रत्ययों का उपयोग अन्यान्य प्रत्यय की अपेक्षा अधिक किया जाता है, जैसे, बरदुलहिन सकुचाहि । दुलही सिय सुंदर | भूलिहू न कीजै ठकुरायनी इतेक इठ । भिल्लिनि . जिनु छोड़ना चाहते हैं। बच्चन ५----बहुत्व सूचित करने के लिये कविता में गद्य की अपेक्षा कम रूपांतर होते हैं और प्रत्यय की अपेक्षा शब्दों से अधिक काम लिया जाता हैं । रामचरितमानस में बहुधा समूह वाचक शब्दो ( गन, वृंद यूथ, निकर आदि ) का विशेष प्रयोग पाया जाता है। उदा०—- जमुना तट कुंज कदंब के पु°ज तरे तिनके नवनीर भरें । लपटी लतिका तरु जालन सों कुसुमावलि तें मकरद गिरें । इन उदाहरणों में मोटे अक्षरों में दिए हुए शब्द अर्थ से बहुवचन हैं; पर उनके रूप दूसरे ही हैं ।। (क) अविकृत कारकों के बहुवचन के संज्ञा का रूप बहुधा जैसा का तैसा रहता है, पर कहीं-कहीं उनमें भी विकृत कार का रूपांतर दिखाई देता है । अकारांत स्त्रीलिंग शब्दों के बहुवचन में हूँ के बदले बहुधा ऐ पाया जाता है। उदा०---भौंरा ये दिन कठिन हैं। बिलोकत ही कछु भौंर की। भीरनि । सिगरे दिन ये ही सुहानी हैं बाते । ( ख ) विकृत कारकों के बहुवचन में बहुधा न, न्ह, अथवा नि