पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/२५१

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परिशिष्ट प्राचीन कविता की भाषा का संक्षिप्त व्याकरण १-हिंदी कविता तीन प्रकार की उपभाषाओं में होती है---ब्रज भाषा, बैसवाड़ी और खड़ी बोली । हमारी अधिकांश प्राचीन कविता ब्रजभाषा में पाई जाती है और उसका बहुत कुछ प्रभाव अन्य दोनों भाषाओं पर भी पड़ा है। स्वयं ब्रजभाषा ही में कभी-कभी बुंदेलखंडी तथा दूसरी भाषाओं का थोड़ा-बहुत मेल पाया जाता है, जिससे यह कहा । जा सकता है कि शुद्ध ब्रजभाषा की कविता प्रायः बहुत कम मिलती है। | इस परिशिष्ट में हिंदी कविता की प्राचीन भाषाओं के शब्द-साधन के 'कई एक नियम संक्षेप में देने का प्रयत्न किया जाता है। २---गद्य और पद्य के शब्दों के वर्ण-विन्यास में बहुधा यह अंतर | पाया जाता है कि गद्य के ड़, य, ले, श, और क्ष के बदले में पद्य में क्रमशः र, ज, ब, स, और छ ( अथवा ख ) आते हैं, और संयुक्त वर्षों के अवयव अलग-अलग लिखे जाते हैं, जैसे, पड़ा = पर, यज्ञ = जज्ञ, पीपल = पीपर, वन = बन, शील = सील, रक्षा = रच्छा, साक्षी = साखी, यत्न=यतन, घर्म=धरम । २-गद्य और पद्य की भाषाओं की रूपावली में एक साधारण • अंतर यह है कि गद्य के अधिकांश आकारात पुलिंग शब्द पद्य में ओकारांत रूप में पाए जाते हैं; जैसे, संज्ञा-सोन=सोनो, चेरा=चेरो, हिया=हियो, नाता=नातो, बसेरा=चसेरो, सपना=सपनो, मायका=मायको, बहाना = बहानो, (उर्दू)।। | सर्वनाम=मेरा=मेरो, अपना=अपनो; पराया==परायो, जैसा= जैसो, जितना=जितनो ।