पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/२२६

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( २१४ } ३६६~-~-साधारणतः वि में केवल एक समापिका या रदती हैं। और वह किसी भी वाक्य, अर्थ, काल, पुप, लिंग, वचन और अयं । में आ सकती है। इसमें संयुक्त कि । समता है। उदा०-- लड़ा जाता है। घर फेंका जायगा । धीरे उजाला होने लगा । ( क ) साधारणतः अकर्मक क्रियाएँ अनः अथ वयं प्रकट करत हैं, परतु अपूर्ण अकर्मक क्रिया का अर्थ पु र के न्।ि उनके साथ उद्देश्य-पृर्ति लगाने की आवश्यकता होती है । उदेश्य-पुति में संज्ञा विशेषण अथवा और कोई नुवाच 5 शब्द । है; जैसे बडू आदमी पाठ है । उसका नौकर चार निकला । ३३ पु म को 4 ।। ( ख ) सकर्मक क्रिया का अर्थ क्रम के बिना पूरा नहीं होता और द्विकर्मक क्रियाओं में दो कम आते हैं, जै, १०if ले बनाते हैं। वह आदमी मुझे बुलाता है। राजा ने ताह्मण को दान दिया ।। ( ग ) अपूर्ण सकर्मक क्रियाओं के फर्मवाच्य के रूप में संप होते हैं, जैसे, वह सिपाही सरदार बन पाया । ऐसा अदम चालक समझा जाता है। उनका कहना झूठ पाया गया ( ५ ) जब अपूछी क्रियाएँ अपना अर्थ प ही प्रकट करता है, तब अकेली ही विधेय होती हैं, जैसे, ईश्वर हैं। सवेरा हुआ हैं चंद्रमा दिखाता है । ३७०-कर्म में उद्देश्य के समान संज्ञा अथवा संज्ञों के समान उप- ग में थानेवाला कोई दूसरा शब्द आता है.--- ( क ) संज्ञा-माली फूल तोड़ता है । सौदागर ने घोड़े बेचे । लड़का पुस्तक पढ़ता है । ३ ख ) सर्वनाम--वह आदमी मुझे बुलाता है। मैंने उसको नहीं देखा | उसने यह भेजा है ।। ( । } विशेषण-दीनों को सत सताओ ! उसने डूबते को बचाया। तुम अनाथों में कटे से बचाऔं ।