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{ २०४ ) संज्ञाएँ एकवचन में आयें तो क्रिया बहुधा पुलिंग एकवचन में दाती है। | गर्म और हवा के झकोरे और भी क्लेश देते थे। उनके चार नेत्र और तीन भुजाएँ थीं । हास्य में मुंह, शाल और ऑखें फूली हुई जान पड़ती हैं । ३३९-यदि भिन्न-भिन्न लिंग वचन की एक से अधिक संज्ञाएँ अप्रत्यथ कच-कारक में आवें, तो क्रिया के लिंग-वचन अंतिम चर्चा के अनुसार होते हैं । हम और तुम वहाँ चलेंगे | तु और वह कल आना | तुम और वे कब आओगे ? । ३४७---भिन्न भिन्न पुरुप के झर्चाओं में यदि उत्तम पुरुष आवे, तो क्रिया उत्तम पुरुष होगी; यदि मध्यम तथा अन्य पुरुष कर्चा में हो तो क्रिया मध्यम पुरुष में रहेगी । मैं या मेरा भाई जायगा । वे और तुम वहाँ ठहर जाना। इस काम में कोई हानि अथवा लाभ नहीं हुआ । ३४१यदि कई कच विभाजक समुच्चय बोधक के द्वारा जुड़े हों; तो अंतिम कच क्रिया से न्वित होता है । (२) कर्म और क्रिया का अन्वय मैंने गाय और भैंस माल ली । शिकारी ने भेड़िया और चीता देखे । महाजन ने वहाँ लड़की और भतीजा भेजें। ३४२--एक ही लिंग की अनेक एकवचन प्राणिवाचक संज्ञाएँ अप्र- पय कर्म-कारक में आवे तो क्रिया उसी लिंग के बहुवचन में आती है। मैने कुएँ में से एक बड़ा और लोटा निकाला । उसने सुई और केंधी संदूक में रख दी । सिपाही ने युद्ध में साहस और धीरज दिखाया था ।