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( १९६ ) ( अ ) प्रार्थना-प्रश्नवाचक वाक्यों में यह अर्थ पाया जाता है; जैसे; क्या आप कल वहाँ चलेगे ? क्या तुम इतन। भेरा काम कर दोगे ? क्या वे मेरी बात सुनेगे ? ( इ ) संकेत-यदि रोगी की सेवा होगा, तो वह अच्छा हो जायगा । अगर इबा चलेगी, तो गरमी कम हो जायगी ।। ( ३ ) प्रत्यक्ष विधि ३२२--इस काल में अर्थ थे हैं--- ( अ ) अनुमति-प्रश्न-उत्तम पुरुप के दोने वचन में किसी की अनुमति अथवा परामर्श ग्रहण करने में इस काल का उपयोग होता है; जैसे, क्या मैं जाऊँ ? हम लोग यहाँ बेटे ? ( ) संमति---उत्तम पुरुष के दोनों वचनों में कभी कभी इस काल से श्रोता का संमति का वध होता है; जैसे ' चले, उस रोग की परीक्षा करे । हमलोग मोहन को यहाँ बुलाये । ( इ ) आज्ञा और उपदेश–यहाँ बैठा। किसी को गाली मत दो। नौकर अभी यहाँ से जावे ।। (ई) प्रार्थना-अप मुझपर कृपा करे । नाथ, मेरी इतनी विनती मानिए | नाथ, करहु बालक पर छोहू । (४) परोक्ष विवि ३२३--इस काल के अर्थ ये हैं--- ( अ ) परोक्ष विधि से आज्ञा, उपदेश, प्रार्थना आदि के साथ भविष्यत् काल का अर्थ पाया जाता है; जैसे, कल मेरे यहाँ आना। हमारी शीघ्र सुधीलीजिये । कीजो सदा धर्म से शासन, स्वत्व प्रजा के मत हरियो । ( अ ) **आप के साथ परोक्ष विधि में गात आदर-सूचक विधि का प्रयोग होता है; जैसे, कल अप वहाँ जाइएगा । आप उन्हे बुलाइएगा ।। (५) सामान्य संकेतार्थ ३२४----इस काल के अर्थ ये हैं---