पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/२०५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
( १९३ )

(ङ) सेव्य-सेवक-भाव-ईश्वर का भक्त; गॉव का जोगी, राजा की सेना (च) गुण गुणी भाव-मनुष्य की बड़ाई, आम की खटाई, भरोसे की नौकर । (छ) नाता--राजा का भाई, स्त्री का पति, मेरा काका । . (ज) प्रयोजन---बैठने का कोठा, पीने का पानी, खेती का बैल ।। (झ) मोल या माल-पैसे का गुड़, गुड़ का पैसा, रुपए के सात सेर चावल ।।

(ञ) परिमाण-दो हाथ को लाठी,दस बीघे का खेत, चार सेरकी नाप ।

(७) अधिका -कारक ३१७----अधिकरण-कारक की मुख्य दा विभक्तियाँ हैं ---में और पर । इन दोनों के अर्थ और प्रयोग अलग-अलग हैं। (१) ॐ' का प्रयोग नीचे लिखे अर्थों में होता है- (क) आभ्यंतर आधार-दूध में मिठास है। मछलियाँ समुद्र में रहती हैं। नौकर काम में है। , (ख) मोल पुस्तक चार आने में मिली । उसने बीस रुपए में • गाय ली । यह कपड़ा तुमको कितने में बेचा ? (ग) मेल तथा अंतर---इममें तुम में कोई भेद नहीं है। भाई-भाई | मे प्रीति है । उन दोनों में अनबन है । | (घ) करण-व्यापार में उसे टोटा पड़ा । क्रोध में शरीर छीजता है। बातो में उड़ाना । (ङ) निर्धारण ---देवताओं में कौन अधिक पूज्य है ? सती स्त्रियो में पद्मिनी प्रसिद्ध है। अंधो मे काने राजा । सब में छोटा । । (च) स्थिति-सिपाही चिता में है। उसका भाई युद्ध में मारा । गया । रोगी होश में नहीं है ।। (छ) निश्चित काल की स्थिति-वह एक घंटे में अच्छा हुआ । दूत कई दिनों में लौटा । प्राचीन समय में भोज नाम का एक प्रताप राजा हो गया है ।