पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/२०४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
( १९१ )

हैं ( ५ ) अपादान-कारक ३१५८ अपादान-कारक के अर्थ और प्रयोग नीचे लिखे अनुसार होते हैं--- | ( क ) काल तथा स्थान का आरंभ-वह लखनऊ से आया । मैं कल से वेकल हूँ। गंगा हिमालय से निकली है । ३ ख ) उत्पत्ति----ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न हुए हैं । दूध से - दही बनता है । कायला खदान से निकाला जाता है ।। | ( T; } काल वा स्थान का अंतर-~अटक से कटक तक । सवेरे से सॉझ तक । नख से शिख तक है। ( घ) भिन्नता ---यह कपड़ा उससे अलग है। आत्मा देह से भिन्न है । गोकुल से मथुरा न्यारी ।। (ङ) तुलना----मुझसे बढ़कर पानी कौन होगा ? भारी से भारी वजन । छोटे से छोटा प्राणी । | { च ) वियोग-वह मुझसे अलग रहता है। पेड़ से पचे गिरते हैं । मेरे हाथ से छड़ी छूट पड़ी । | ( छ } निर्धारण निश्चित करना }-इन कपड़ों में से अाप कौन सा लेते हैं ? हिंदुओं में से कई लोग विलायत को गए हैं। इन लड़कों में से एक को मैं जानता हूँ । ( ६) संबंध- कारक ३१६ संबंध-कारक से अनेक प्रकार के अर्थ सूचित होते हैं; उनमें से यहाँ केवल मुख्य-मुख्य अर्थ लिखे जाते हैं--- (क) स्व-स्वामिभाव----देश का राजा, मालिक का घर, मेरा घर ।। (ख) बंगगिभाव-लड़के का हाथ, स्त्री के केश; तीन खंड का मकान । (ग) लन्य-जनक-भाव-छड़के का बाप, ईश्वर की सृष्टि, राजा का बेटा। (ब) कार्य-कारण भावसोने की अँगूठी, चॉदी का पलंग, मूर्ति का पत्थर ।