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( १६.१ ) ( ख ) कारण-आपके दर्शन से लाभ हुआ । धन से प्रतिष्ठा बढ़ती है। वह किसी पाप से अजगर हुआ था ।। (ग) रीति-लड़के क्रम से बैठे हैं। मेरी बात श्यान से सुनो। नौकर धीरज से काम करता है ।। (घ ) साहित्य-विवाह धूम से हुआ । सर्वसंमति से निश्चय हुआ । आम खाने से काम या पेड़ गिनने से ? (ङ) दशा-शरीर से हट्टा-कट्टा ! स्वभाव से क्रोधी । हृदय से दयालु। । (च) भाव और पलटा---गेहूँ किस भाव से बिकता है ? तुमने ब्याज किस हिसाब से लिया ? वे अनाज से घी बदलते हैं। (४) संप्रदानकारक ३१४-संप्रदान-कारक नीचे लिखे अर्थों में आता है ( क ) द्विकर्म क्रिया के गौण कर्म में---राजा ने ब्राह्मण को धन दिया। गुरु शिष्य को व्याकरण सिखाता है। ढोरो को मैला पानी न पिलाना चाहिये । . ( ख ) फल वा निमित्त --ईश्वर ने सुनने को दो कान दिये हैं लड़के सैर को गए। वह धन के लिए मरा जाता है ।। | ( ग ) प्राप्ति-मुझे बहुत काम रहता है। उसे भरपूर आदर : | मिला । लड़के को पढना आता है। | (घ) मनोविकार---उसको देह की सुधि न रही। इस बात में * किसी को शंका न होगी ।। (ङ) प्रयोजन---मुझे उनसे कुछ नहीं कहना है। उस को इसमें , कुछ लाभ नहीं । तुमको इसमें क्या करना है ? । (च) कर्त्तव्य, आवश्यकता और योग्यता-मुझे वहाँ जाना चाहिए। में यह बात तुमको कब योग्य है । उनको वहाँ रहना था ।