पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/२०

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  • र' में 'उ' और 'ऊ' की मात्राएँ मिलाने से उनका रूप कुछ बदल जाता है; जैसे, रुकना' और 'रूप' में ।

(२) व्यंजनों का संयोग २६-~-जब किसी व्यंजन में स्वर नहीं रहता तब वह अपने आगे आनेवाले व्यंजन में मिल जाता है; जैसे, । सत् + कार==सत्कार, सम् + बंध= संबंध ( संबंध ) । सू०-हिंदी में बहुधा तीन व्यंजलों से अधिक एक साथ नहीं मिलते। २७--जिन अक्षरों में पाई ( 1 ) रहती है उनकी पाई संयोग में गिर जाती है; जैसे, त् + थ==त्थ, प्य =म्य, + =च्छ, त्+ स् + य = दस्य (मत्स्य' में )। २८--ङ, छ, ट, ठ, ड, ढ और ह संयोग आदि में भी पूरे लिखे जाते हैं और आगे आनेवाली व्यंजन इनके नीचे लिखी जाता है; जैसे, - **सङ्ग”, “उछ्वास”, “पट्टी”, “गड्डु” और “चिह्न' में ।। २६-जब र के पीछे कोई व्यंजने आता है तब वह उसके ऊपर रेफ ) के रूप में लिखा जाता है; जैसे, “दुगुण”, “निर्जन', 'धर्म' में । जब कार किसी व्यंजन के पीछे आता है तब उसके दो रूप होते हैं, | ( १ ) पाईवाले अक्षरों के साथ र इस (-) रूप में मिलता है, जैसे, 'चक्र, ह्रस्व”, “बज्र में । (२) दूसरे व्यंजनो के साथ र इस रूप (.) में आता है; जैसे, *राष्ट्र, "पुडू” “कृच्छु” में ।। सू०-( १ ) र के पश्चात् ऋ ( स्वर ) आने पर भी वह रेफ के रूप में आता है, जैसे नैऋत्य' में । | ( ३ ) ब्रजभापा मे र+ये का स्य होता है; जैसे, मारयो', हारयो', "धारा में । कई एक संयुक्त व्यंजन दो-दो रूपों में लिखे जाते हैं, कुक = , क्क, बु + व==व, ले* ल=ल, शू+व = श्व, श्व, क्-म्त=क्त, क्त और + त = त, त ।