पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/१९८

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( १८६ ) अंतर्गत आ गईं; तब सर्वसाधारण के लिए सरल भाषा की आवश्यकता पड़ी । इस समय आधुनिक देशी भाषा का जन्म हुआ । हिंदी भाषा का उद्गम भी इसी समय हुआ । हिंदी की जन्म प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं की उन शाखाओं से हुअा जो शौरसेनी और अर्द्ध मागधी कहलाती थीं । भाषाएँ ग्यारहवीं शताब्दी तक प्रचलित थीं । हेमचंद्र के प्राकृत व्याकरण में हिंदी का उदाहरण दिया गया है---

  • भल्ला हु जु सारिया, बहिणि महारा कतु ।

लज्जेजंतु इयंसिथहु, जई भग्गा धरु : पंतु ।। | हे बहिन भला हुआ जो मेरा पति मर गया । वह भागा हुअा घर आता तो मैं सखियो मे लज्जित होती । ) पृथ्वीराज रासो में भी पुरानी हिंदी का रूप पाया जाता है। इस काल की भाषा में प्राकृत और अपभ्रंश शब्दों की अधिकता है। इस समय की भाषा में हिंदी का रूप पूरी तरह स्थिर नहीं हुआ था। चंद कवि के समय के पश्चात् से हिंदी का रूप कुछ-कुछ स्थिर होने लगा था। चंद के समय का हिंदी उदाहरण यह है--- उच्छिष्ट छंद चंदन बयन सुनत सुजंपियं नारि । ततु पवित्र पावन कबिय उकति अनूठ उघारि ॥ ५ ‘छंद, कविता उच्छिष्ट है', चंद का यह बचन सुनकर स्त्री ने कहा--पावन कवियों की अनूठी उक्ति का उद्धार करने से शरीर पवित्र हो जाता ) । । यद्यपि इस काल में कई कवि हुए, पर उन सबकी रचनाएँ उपलब्ध नहीं हैं, इसलिये इस युग का प्रमुख कवि पृथ्वीराज रासो का लेखक चंद कविं हीं माना जाता है। चंद का समकालीन कवि जागनिक था जिसके ग्रंथों के आधार पर आल्हा ( काव्य ) की रचना हुई है। यह काल हिंदी का आदिकाल कहलाता है ।