पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/१९४

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{ १८९५ : ३०२-ऊपर लिखे रेस्त्रांकित शब्ट्र में प्रत्येक समास के दोनों शब्द प्रधान नहीं हैं। मंद बुद्धि कहने से न संद ही का अर्थ निकलता है और न बुद्धि का, किंतु ऐसे व्यक्ति का अर्थ निकलता है, जिसमें ये दोनों भावनाएँ पाई जाती हैं अर्थात् जिसकी बुद्धि-मंद है। जिस समास में कोई भी शब्द प्रधान नहीं होता और जो अपने शब्दों से भिन्न किसी सज्ञा की विशेषता बताता है उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं । ३०३---इस समास के निग्रह में संबंधवाचक सर्वनाम जो कच और संबोधन कारकों को छोड़ शेष जिस कारक की विभक्ति लगती है, उसी के अनुसार इस समास का नाम होता है; जैसे-~-~- कर्म-बहुव्रीहि-इल जाति के संस्कृत समास का प्रचार हिंदी में नहीं है और न हिंदी में ऐसे कोई समास हैं ।। | कारण-बहुव्रीहि---जितेन्द्रिय ( जीती गई हैं इंद्रियाँ जिसके द्वारा ), कृतकार्य ( किया गया है कार्य जिसके द्वारा ) । संप्रदान-बहुव्रीहिः---यह समास भी बहुधा हिंदी में नहीं आता । इसके संरकृत उदाहरण ये हैं..देवधन (' दिया गया धन जिसको }, . उपहृत { भेंट में दिया गया है पशु जिसको ) । सबंध-बहुव्रीहि-दशानन ( दश है आनन-मुंह-जिसके ), सहस्रबाहु । सइस्त्र हैं बहु जिसके } पीतांबर ( पीत है अंबर-कपड़ा-जिसका }। हिंदी-----कनफटा, दुधमुहा, मिठबा । अपादान-बहुत्राहि-निर्जन ६ निकल गया जन-समूह जिसमें से ), निर्विकार, विमल } - अधिकरणबहुव्रीहि-प्रफुल्ल-कमल ( खिले हैं कमल जिसमें, वह तालाब } इंद्रादि ( इंद्र हैं आदि में जिनके, वे देवता )। हिंदी-- पतझड़, अलोना, सतखंडा ।। | ३०४---एक समास में आनेवाले शब्द एक ही भाषा के होने चाहिऐ; जैसे, पाकशाला, रसोईघर; बाबखाना, पर इस नियम के कई अपवाद भी हैं; धन, दौलत !