पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/१९३

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( १८१ ) (५) द्वंद्व समास ऋषि-मुनि ( ऋषि और मुनि ), सीता राम ( सीता और राम ) राधा-कृष्ण ( राधा और कृष्ण ), गाय-बैल ( गाय और बैल ) भाई-बहिन ( भाई और बहिन ), पाप-पुण्य ( पाप और पुण्य ) ३००-पूर्वोक्त उदाहरण में प्रत्येक समास के दोनो शब्द प्रधान है अर्थात् दोनों ही के विषय में चर्चा की गई। इस समास में दोनों शब्दो के बीच में आनेवाला समुच्चय-बोधक ( 'और' अथवा 'वा' } लुप्त रहता है। यह समास द्वंद्व समास कहलाता है। ३०१---द्वंद्व समास तीन प्रकार का होता है। (१) इतरेतर द्वंद्व-जिस समास के दोनों शब्द “और समुच्चय बोधक से जुड़े हुए हो, पर उस समुच्चय-बोधक का लोप हो; उसे इतरेतर द्वद्व' कहते हैं, जैसे- सस्कृत-सुख-दुःख, राम-लक्ष्मण, देव-दानव । हिंदी-माँ-बाप, दूध-रोटी, नाक-कान । (२) समाहार द्वंद्व-जिस द्वंद्व समास से उसके पदो के अर्थ के सिवा उसी प्रकार का और भी अर्थ सूचित हो उसे समाहार द्वंद्व । कहते हैं; जैसे, सेठ-साहूकार ( सेठ और साहूकारो के सिवा और भी लोग ) भूल-चूक, हाथ-पॉव, रुपया-पैसा । । ( ३ ) वैकल्पिक द्वंद्व-जब दो पद “वा' अथवा' आदि | - विकल्प-सूचक समुच्चय-बोधक के द्वारा मिले हो और उस समुच्चय-बोधक ' का लोप हो जाय, तब उन पदों के समास को वैकल्पिक द्वंद्व कहते हैं । इस समास मे बहुधा परस्पर विरोधी शब्दो का मेल होता है, जैसे, जात-कुजात, पाप-पुण्य, धर्माधर्म । | ( ६ ) बहुव्रीहि समास वह बालक मंद-बुद्धि है। यहाँ एक कन फटा साधु आया। मुनि जितेंद्रिय होते हैं। मैंने नीलकंठ पक्षी देखा ।