पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/१९२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
( १८० )

है! ( १८० } ( ३ ) का समाप्त नील कमल भुलमानस, इमानद इा घर ३६७-ऊपर लिखे उदाइरण में पहला शव्द विशेषण और दूसरा शब्द निशेश्य है। इसमें भी दूसरा शब्द प्रधान होता है। इस समास को क रय कहते हैं । ( अ ) तत्पुरुधु और कर्मधारय । यई अंतर है किं तत्पुरुष के खंडों •में अलग-अलग विभक्तियाँ लगाई जाती हैं, परंतु कर्मधारय के खंडों में, एक ही सी विभक्ति रहती है । ३९८-कर्मधारय समास दो प्रकार झा है । जिस सस से विशेष्य विशेषण भाव सूचित होता है उसे पिता-वाचक कर्मधारय और जिसे उपमानोपमेय-भाव जाना जाता है उसे उमा वाचक कर्मधारय कहते हैं। उद'०- विशेषताचाच काय संस्कृत-पीताबर, सत्गुण, नाल-काल । हिंदी---झालीमिर्च, मंझधार, नीलगाये । उपमावाचक कर्मधारय संस्कृत--चंद्रमुख { सूरी व मुख ), घनश्याम ( घन सरीखा श्याम ), वज्र देह ( वज्र के समान देह } । (४) द्विगु समास त्रिभुवन १ तीन भुवनों का समूह }, त्रिकाल (तीन कालो का समूह) पंचपात्र ( पॉच पन्नों का समूह है, परस १ चट रसो का समूह ) दोपहर ( दे पद्दों का समूह }, शठला (अाठ वारो का समूह) । २९६---ऊपर लिखे उदाहरणों में पहला पद सख्यावाचक विशेषण है और समूचे शव्द से कुछ वस्तुओं का समूह सूचित होता है। यह समास कर्मधारय झा एक भेद है, क्योकि दोनों में पहला शब्द विशेषण होता है। इस समास को द्विगु समास कहते हैं ।