पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/१९

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परिमाण साधारण रहता है ! शेष-व्यंजन महाप्राण कहलाते हैं, क्योकि उनका उच्चारण करने में साँस अधिक प्रमाण में निकाली जाती है। सूचना-सब स्वर घोष अल्पप्राण हैं । २२-प्रत्येक वर्ग के पाँचवें अक्षर, अर्थात् 'छु', '’, ‘ए’, ‘न्’ | और 'म्' को अनुनासिक व्यंजन कहते हैं, क्योकि इनका उच्चारण नासिका से होता है। इनके बदले इच्छानुसार अनुस्वारः लिखा जा सकता है; जैसे, 'गङ्गा' = 'गंगा'; ‘पञ्च' = 'पंच', 'दण्ड' = 'दंड' 'सन्त' = 'संत', • कम्प' = 'कंप' । अभ्यास १--नीचे लिखे शब्दो में व्यंजनों के भेद बताओ--- अमर, लहर, शहर, वन, रावण, उदय; चपल, छाया, साहस, पुरुष, उदास, खर, झरना, कंगाल, संमान । चौथा पाठ संयुक्त अक्षर ( १ ) स्वरों का संयोग , २३-व्यंजनों का उच्चारण स्वरो के योग के बिना नहीं हो सकता; | इसलिये व्यंजनों में स्वर मिलाए जाते हैं । व्यंजनों में मिलने के पहले स्वरों का रूप बदल जाता है और इस बदले रूप को मात्रा कहते हैं । प्रत्येक स्वर की मात्रा नीचे लिखी जाती है-- | अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ ।। २४-'अ' की अलग मात्रा नहीं है। उसके मिलने पर व्यंजन का | इल, चिह्न (,) निकल जाता है; जैसे क् + अ = क, च्+अ = च । ', | २५-व्यंजनों में मात्राएँ मिलाने की रीति यह है-- क, का, की, कु, कु, के, कृ, के, के, को, कौ ।