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( १७७) वह तन-मन-धन से मेरी सहायता करेगा । त्रिभुवन में दशरथ के सभान कोई राजा नहीं हुआ । २८५--ऊपर लिखे वाक्यो में रेखाकित शव्द दो या अधिक शब्दों के मेल से बने हैं और उनके संबंधी शब्दों का लोप हो गया है, जैसे, दया-सागर = दया ( का ) सागर । दाल-रोटी = दाल ( और ) रोटी । मंद-बुद्धि = ( जिसकी ) बुद्धि मंद ( है )। तन-मन---धन = तन ( और ) मन ( और ) धन । त्रिभुवन = ( तीन भुवनों का समूह ) जब दो या अधिक शब्द अपने संबंधी शब्दों को छोड़कर एक साथ मिल जाते हैं तब उनके मेल को समास और उनके मिले हुए शब्दों को सामासिक शब्द कहते हैं। इन शब्दो का संबंध प्रकट कर दिखाने की रीति को विग्रह कहते हैं । २८६---जब दो या अधिक संस्कृत शब्द परस्पर जोड़े जाते हैं, तब उनमें बहुधा संधि के नियमों का प्रयोग होता है, जैसे-~ राम + अवतार=रामावतार, पत्र + उत्तर-पत्रोत्तर सनस् + योग=मनोयोग . २८७--- किसी सामासिक शब्द में विभक्ति लगाने का प्रयोजन हो। तो उसे समास के अंतिम शब्द में जोड़ते हैं, जैसे, मॉ-बाप से, राज-कुल में, भाई-बहिनों का ! ( १ ) अव्ययीभाव समास । ' मैं यथा-शक्ति प्रयत्न करूंगा । लड़का प्रति-दिन पाठशाला जाता है | वह आजीवन कंगाल रहा । गाड़ी धीरे-धीरे चलती है । २८८-ऊपर लिखे रेकाफित शब्दों में प्रत्येक का अर्थ पहले शब्द के अनुसार है और वह पहला शब्द अव्यय है। समूचा शब्द