पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/१८६

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( १७४ ) तु छ तद्धित ( क ) कर्तृवाचक संज्ञाएँ आर---यह प्रत्यय संस्कृत के कार” प्रत्यय का अपभ्रंश है। उदा०---कुम्हार ( कुंभहार }, सुनार ( स्वर्णकार ) लुहार, चमार । आर, आरी, आड़ी---ये अर' के पर्यायी हैं और थोडे से शब्द में लगते हैं; जैसे, बलिज---बनिया, पूज--पुजारी, खेल-खेलाड़ी। इया---कुछ संज्ञा से इस प्रत्यय द्वारा कतृवाचक संज्ञाएँ बनती हैं; जैसे अढत-अढ़तिया, मक्खन-मखनिया, दुख-दुखिया । ई-कोई-कोई व्यापारवाचक संज्ञाएँ इसी प्रत्यय के योग से बनती हैं; जैसे तेलवातेली, मालामाली ! एरा-९ व्यापारवाचक }---जैसे, सॉप-सुपेरा, फॉस-कसेरा, लाखे- लखेरा है । एड़ी-जैसे, भॉग-भेगेड़ी, गॉजा-ॉजेड़ी । एत-जैसे, लठ्ठ-लठैत; माता-नतैत; डाक-डकैत । बालयह प्रत्यय वाला” का शेप है; जैसे, गया---गयावाल, प्रयाग-प्रयागवाल, पल्ली-पल्लीवाल । वाला-जैसे, टोपी-टोपोवाला, धन-धनवाला, गाड़ी-गाडीवाला । इरा--यह प्रत्यय वाला का पर्यायी है; परंतु इसका उपयोग उसकी अपेक्षा कम होता है; जैसे, लकड़ी--लकड़हारा, चूड़ी-चूड़िहारा, पानी- पनहा । १ ख } भाववाचक संज्ञाएँ जैसे, बजाज-व्रजाज, सराफ-सरागा, बोझ-बोझा । आइँद-जैसे, कपड़ा-कपड़ाइँद, सड़ना-सुड़ाईंद, विन-धिनाइँद । आई-इस प्रत्यय के योग से विशेपणो और संज्ञाओं से भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं जैसे, भला-भलाई, बुरा-बुराई, पंडित-पंडिताई ।।