पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/१८०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
( १६८ )

( १६८ } २८०-हिंदी में और दो प्रकार के यौगिक शब्द हैं जो क्रमशः पुनरुक्त और अनुकर-चक कहलाते हैं । पुनरुक्त शब्द किसी शब्द को दुहराने से बनते हैं, घर-घर. मारी मारी, काम-धाम, काट-कूट। अनुकरण-वाचक शब्द किसी पदार्थ की यथार्थ अथवा कल्पित ध्वनि को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं, खटखट, धड़ाम, चटपट, तडाक | . | २८१-प्रत्ययो से बने हुए शब्दो के दो मुख्य भेद हैं---कृदंत औत तद्रित । धातुओं के आगे लगाए गये प्रत्ययों के योग से जो शब्द बनते हैं, वे कृदंत कहलाते हैं । धातुओं को छोड़ शेष शब्दों के आगे प्रत्यय लगाने से जो शब्द बनते हैं, उन्हें तद्भित कहते हैं; जैसे, बोलने- वाला ( कृदंत }, दूधवाला ( तद्धित ), लड़ाई ( कृदंत ), बड़ाई ( तद्धित }।। । १८३--- हिंदी में उपसर्गयुक्त संस्कृत तत्सम शब्द भी आते हैं, इसलिये उनके संबंध से पहले संस्कृत उपसर्गों का विवेचन किया जायगा । | ( क ) संस्कृत उपसर अति=अधिक, उसपार; जैसे, अतिकल, अतिरिक्त, अतिशय । अधि=ऊपर, स्थान में श्रेष्ठ; जैसे, अधिपति, अधिकार, अधिकरण । अनु=पाछे, समान, जैसे, अनुकरण, अनुक्रमक, अनुचर ।। अप=बुरा, हीन, विरुद्ध, अभाव; जैसे, अपशब्द, अपकीर्ति, अपमान अभि=ओर, पास, सामने; जैसे, अभिलाषा, अभिप्राय, अभिमुख । अव=नीचे, हीन, अभाव; जैसे, अवगत, अवगुण, अवतार । =तक, समेत, उलटा; जैसे, आकर्षण, जीवन, अाक्रमण । उत्-ऊपर, ऊँचा, श्रेष्ठ, जैसे, उत्कर्ष, उत्कंठा, उत्तम । उप=निकट, सदृश, गौण; जैसे, उपकार, उपदेश, उपनाम । दुर=दुस=बुरा, कठिन, दुष्ट; जैसे, निदर्शन, निपात, नियम । नि=भीतर, नीचे, बाहर; जैसे, निदर्शन, निपात, नियम | निर्-निस् = बाहर, निषेध; जैसे, निर्गत, निर्णय, निरपराध ।